________________ प्राथमिक [151 * तीसवें पद में पूर्वोक्त वक्तव्यता के पश्चात् केवलज्ञानी द्वारा रत्नप्रभा आदि का ज्ञान और दर्शन (अर्थात्-साकारोपयोग तथा निराकारोपयोग) दोनों समकाल में होते हैं या क्रमशः होते हैं ? इस प्रकार के दो प्रश्नों का समाधान किया गया है तथा ज्ञान और दर्शन का क्रमशः होना स्वीकार किया है / जिस समय अनाकारोपयोग (दर्शन) होता है, उस समय साकारोपयोग (ज्ञान) नहीं होता तथा जिस समय साकारोपयोग होता है, उस समय अनाकारोपयोग नहीं होता, इसी सिद्धान्त की पुष्टि की गई है।' 1. (क) पण्णवणासुत्तं, भा. 1 (मू. पा. टि.), पृ. 412 (ख) वही, भा. 2 (परिशिष्ट), पृ. 138 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org