________________ 154] [प्रज्ञापनासूत्र 1918. पुढविक्काइयाणं भंते ! अणागारोवनोगे कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! एगे अचक्खुदंसणाणागारोवनोगे पण्णत्ते। [1618 प्र.] भगवन् ! पृथ्वोकायिक जीवों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है। [1918 उ.] गौतम ! उनका एकमात्र अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग कहा गया है। 1916. एवं जाव वणफइकाइयाणं / [1616] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक (के विषय में जानना चाहिए।) 1920. बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! दुविहे उवमोगे पण्णत्ते / तं जहा--सागारे प्रणागारे य / [1620 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों के उपयोग के विषय में पृच्छा ? [1920 उ.] गौतम ! उनका उपयोग दो प्रकार का कहा है। यथा-साकारोपयोग और अनाकारोपयोग / 1921. बेइंदियाणं भंते ! सागारोवनोगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउम्विहे पण्णत्ते / तं जहा-प्राभिणिबोहियणाणसागारोवनोगे 1 सुयणाणसागारोवनोगे 2 मतिअण्णाणसागारोवोगे 3 सुतअण्णाणसागारोवनोगे 4 / [1621 प्र.) भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? [1921 उ.] गौतम ! उनका उपयोग चार प्रकार का कहा गया है / यथा-(१) प्राभिनिबोधिकज्ञान-साकारोपयोग, (2) श्रुतज्ञान-साकारोपयोग, (3) मति-अज्ञान-साकारोपयोग और (4) श्रुत-अज्ञान-साकारोपयोग / 1922. बेइंदियाणं भंते ! अणागारोवोगे कतिविहे पण्णते? गोयमा ! एगे अचक्खुदंसणसणागारोवनोगे / [1622 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? [1622 उ.] गौतम ! उनका एक ही अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग है। 1923. एवं तेइंदियाण वि। [1623] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों (के साकारोपयोग और अनाकारोपयोग) का (कथन करना चाहिए।) 1924. चरिंदियाण वि एवं चेव / णवरं प्रणागारोवनोगे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-चक्खुबसणप्रणागारोवनोगे य अचक्खुदंसणणागारोवोगे य / [1924] चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। किन्तु उनका अनाकारोपयोग दो प्रकार का कहा है / यथा-चक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग और अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org