________________ उनतीसवां उपयोगपद] 153 [1912 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों का उपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? [1612 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथासाकारोपयोग और अनाकारोपयोग। 1913. णेरइयाणं भंते ! सागारोवनोगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहे पण्णत्ते। तं जहा–मतिणाणसागारोवनोगे 1 सुयणाणसागारोवओगे 2 प्रोहिणाणसागारोवनोगे 3 मतिअण्णाणसागारोवोगे 4 सुयअण्णाणसागारोवनोगे 5 विभंगणाणसागारोवोगे 6 / [1613 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? [1613 उ.] गौतम ! वह छह प्रकार का कहा गया है। यथा-(१) मतिज्ञान-साकारोपयोग, (2) श्रुतज्ञान-साकारोपयोग, (3) अवधिज्ञान-साकारोपयोग, (4) मति-अज्ञान-साकारोपयोग, (5) श्रुत-अज्ञान-साकारोपयोग और (6) विभंगज्ञान-साकारोपयोग। 1914. रइयाणं भंते ! अणागारोवनोगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! तिविहे पण्णते। तं जहा--चक्खुदसणणागारोवप्रोगे 1 अचक्खुदंसणप्रणागारोवनोगे 2 प्रोहिदसणप्रणागारोवनोगे 3 य / [1914 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? {1914 उ.] गौतम ! वह तीन प्रकार का कहा गया है। यथा--(१) चक्षुदर्शनअनाकारोपयोग, (2) अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग और (3) अवधिदर्शन-अनाकारोपयोग / 1915. एवं जाव थणियकुमाराणं / [1915] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् स्तनितकुमारों तक (के साकारोपयोग और अनाकारोपयोग का कथन करना चाहिए / ) 1916. पुढविक्काइयाणं पुच्छा / गोयमा ! दुविहे उवमोगे पण्णत्ते / तं जहासागारोवप्रोगे य प्रणागारोक्नोगे य / [16.16 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के उपयोग-सम्बन्धी प्रश्न ? [1916 उ.] गौतम ! उनका उपयोग दो प्रकार का कहा गया है। यथा-साकारोपयोग और अनाकारोपयोग। 1917. पुढविक्काइयाणं भंते ! सागारोवनोगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णते। तं जहा–मतिमण्णाणे सुतप्रणाणे। [1917 प्र.] भगवन् ! पृथ्वी कायिक जीवों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? [1917 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा--मति-अज्ञान और श्रुत अज्ञान / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org