________________ 118] [प्रज्ञापनासूत्र 1836. पाणए णं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं एगूणवीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं वीसाए वाससहस्साणं / [1836 प्र.] प्राणतकल्प के देवों की आहारविषयक पच्छा ? [1839 उ.] गौतम ! वहाँ जघन्य उन्नीस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट बीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। 1840. प्रारणे णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं वोसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं एक्कवीसाए वाससहस्साणं / [1840 प्र.] आरणकल्प में आहारेच्छा सम्बन्धी पूर्ववत् प्रश्न ? [1840 उ.] गौतम ! जघन्य बीस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट इक्कीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। 1841. अच्चुए णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एक्कवीसाए वाससहस्साणं, उपकोसेणं बावीसाए वाससहस्साणं / [1841 प्र.] भगवन् ! अच्युतकल्प के देवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? [1841 उ.] गौतम ! जघन्य 21 हजार वर्ष और उत्कृष्ट 22 हजार वर्ष में उनको पाहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। 1842. हेटिमहेडिमगेवेज्जगाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं बावीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं तेवीसाए वाससहस्साणं / एवं सव्वत्थ सहस्साणि भाणियवाणि जाव सव्वळें / [1842 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन (सबसे निचले) वेयकों में प्राहारसम्बन्धी पृच्छा ? [1842 उ.] गौतम ! जघन्य 22 हजार वर्ष में और उत्कृष्ट 23 हजार वर्ष में देवों को पाहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। इस प्रकार सर्वार्थसिद्ध विमान तक (एक-एक) हजार वर्ष अधिक कहना चाहिए। 1843. हेटिममज्झिमाणं पुच्छा। गोयमा! जहणेणं तेवीसाए, उक्कोसेणं चउवीसाए / [1843 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-मध्यम वेयकों के विषय में पृच्छा ? [1843 उ.] गौतम ! जघन्य 23 हजार वर्ष और उत्कृष्ट 24 हजार वर्ष में उन्हें माहारेच्छा उत्पन्न होती है / 1844. हेट्ठिमउवरिमाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं चउवीसाए, उक्कोसेणं पणुवीसाए / [1844 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-उपरिम ग्रे वेयकों के विषय में आहाराभिलाषा-पृच्छा ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org