________________ अट्ठाईसवाँ आहारपद] [117 1833. माहिदे युच्छा। गोयमा ! जहण्णणं दोण्हं वाससहस्साणं सातिरेगाणं, उक्कोसेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं सातिरेगाणं / [1833 प्र] माहेन्द्रकल्प के विषय में पूर्ववत् प्रश्न ? [1833 उ.] गौतम ! जघन्य कुछ अधिक दो हजार वर्ष में और उत्कृष्ट कुछ अधिक सात हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। 1834. बंभलोए णं पुच्छा / गोयमा ! जहणेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं दसण्हं वाससहस्साणं / [1834 प्र.] गौतम ! ब्रह्मलोकसम्बन्धी प्रश्न ? [1834 उ.] गौतम ! (वहाँ) जघन्य सात हजार वर्ष में और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है / 1835. लंतए णं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं दसहं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं चोद्दसण्हं वाससहस्साणं आहारट्ठे समुप्पज्जा। [1835 प्र.] लान्तककल्पसम्बन्धी पूर्ववत् पृच्छा ? [1835 उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट चौदह हजार वर्ष में उन्हें आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। 1836. महासुक्के णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं चोइसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं सत्तरसण्हं वाससहस्साणं। [1836 प्र.] महाशुक्रकल्प के सम्बन्ध में प्रश्न ? [1836 उ.] गौतम ! वहाँ जघन्य चौदह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट सत्तरह हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। 1837. सहस्सारे णं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णणं सत्तरसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं / [1837 प्र.] सहस्रारकल्प के विषय में पृच्छा ? [1837 उ.] गौतम ! जघन्य सत्तरह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट अठारह हजार वर्ष में उनको पाहारेच्छा उत्पन्न होती है / 1838. प्राणए गं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं एगूणवीसाए वाससहस्साणं / [1838 प्र.] आनतकल्प के विषय में आहारसम्बन्धी प्रश्न ? [1838 उ.] गौतम ! जघन्य अठारह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट उन्नीस हजार वर्ष में प्राहारेच्छा पैदा होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org