________________ अट्ठाईसवां आहारपद [131 1876. असण्णो णं भंते ! जीवा किं पाहारगा प्रणाहारगा? गोयमा ! प्राहारगा वि प्रणाहारगा वि, एगो भंगो। [1879 प्र.] भगवन् ! (बहुत) असंज्ञी जीव आहारक होते हैं या अनाहारक ? [1876 उ.] गौतम ! वे अाहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं। इनमें केवल एक ही भंग होता है। 1880. [1] असण्णी णं भंते ! रइया कि पाहारगा अणाहारगा ? गोयमा ! पाहारगा वा 1 अणाहारगा वा 2 अहवा आहारए य अणाहारए य 3 अहवा श्राहारए य प्रणाहारगा य 4 अहवा पाहारगा य प्रणाहारगे य 5 अहवा आहारगा य अणाहारगा य 6, एवं एते छन्भंगा। [1880-1 प्र.] भगवन् ! (बहुत) असंज्ञी नैरयिक आहारक होते हैं या अनाहारक ? [1880-1 उ.] गौतम वे--(१) सभी आहारक होते हैं, (2) सभी अनाहारक होते हैं / (3) अथवा एक आहारक और एक अनाहारक, (4) अथवा एक आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं, (5) अथवा बहुत-से ग्राहारक और एक अनाहारक होता है तथा (6) अथवा बहुत-से आहारक और बहुत-से अनाहारक होते हैं / [2] एवं जाव थणियकुमारा। [1880-2] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। [3] एगिदिएसु अभंगयं / [1880-3] एकेन्द्रिय जीवों में भंग नहीं होता। [4] बेइंदिय जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु तियभंगो। [1880-4] द्वीन्द्रिय से लेकर यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तक के जीवों में पूर्वोक्त कथन के समान तीन भंग कहने चाहिए। [5] मणूस-वाणमंतरेसु छन्भंगा। [1880-5] मनुष्यों और वाणव्यन्तर देवों में (पूर्ववत्) छह भंग कहने चाहिए / 1881. [1] पोसण्णी-णोअसणी णं भंते ! जो कि आहारए अणाहारए ? गोयमा ! सिय प्राहारए सिय प्रणाहारए। [1881-1 प्र.] भगवन् ! नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव आहारक होता है या अनाहारक ? [1881-1 उ ] गौतम ! वह कदाचित आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है / [2] एवं मणूसे वि। [1881-2] इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी कहना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org