Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सत्तावीसइमं कम्मवेयवेयगपयं सत्ताईसवाँ कर्मवेदवेदकपद ज्ञानावरणीयादिकर्मों के वेदन के साथ अन्य कर्मप्रकृतियों के वेदन का निरूपण 1787. [1] कति णं भंते ! कम्मपगडीलो पण्णत्तानो ? गोयमा ! अट्ठ / तं जहा–णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं / [1787-1 प्र.] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? [1787-1 उ.] गौतम ! वे पाठ कही गई हैं / यथा ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। [2] एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं / [1787-2] इसी प्रकार नारकों (से लेकर) यावत् वैमानिकों तक (के आठ कर्मप्रकृतियाँ Alc 1788. [1] जीवे गं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! सत्तविहवेदए वा अट्ठविहवेदए वा। [1788-1 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? / [1788-1 उ.] गौतम ! वह सात या आठ (कर्मप्रकृतियों) का वेदक होता है / [2] एवं मणसे वि / अवसेसा एगतेण वि पुहत्तेण वि नियमा अढविहकम्मपगडीनो वेदेति जाव वेमाणिया। [1788-2] इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी जानना चाहिए। (मनुष्य के अतिरिक्त) शेष सभी जीव (नारक से लेकर) यावत् वैमानिक पर्यन्त एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से नियमत: पाठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं। 1786. जीवाणं भंते ! जाणावरणिज्ज कम्मं वेदेमाणा कति कम्मपगडीमो वेदेति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा अट्ठविहवेदगा 1 अहवा अट्टविहवेदगा य सत्तविहवेदगे य 2 अहवा अट्टविहवेदगा य सत्तविहवेदगा य 3 / एवं मणूसा वि / [1789 प्र.] भगवन् ! (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं ? [1786 उ.] गौतम ! 1. सभी जीव आठ कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं, 2. अथवा कई जीव पाठ कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं, और कोई एक जीव सात कर्मप्रकृतियों का वेदक होता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org