________________ छन्बीसवा कर्मवेदबन्ध-पद [1783-1 उ.] गौतम ! वह सात, आठ, छह या एक का बन्धक होता है अथवा प्रबंधक होता है। [2] एवं मणूसे वि। अवसेसा णारगादीया सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य / एवं जाव वेमाणिए। 1783-2] इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी समझ लेना चाहिए। शेष नारक आदि यावत् वैमानिक पर्यन्त सात के बंधक हैं या आठ के बन्धक हैं / 1784. [1] जीवा णं भंते ! वेदणिज्ज कम्मं वेदेमाणा कति कम्मपगडीयो बंधति ? गोयमा ! सब्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य एगविहबंधगा य 1 अहवा सत्तविहबंधगा य अढविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगे य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगा य एगविहबंधगा य छन्विहबंधगा य 3 प्रबंधगेण वि समं दो भंगा भाणियव्वा 5 प्रहवा सत्तविहबंधगा य अढविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधए य अबंधए य चउभंगो 6, एवं एते गव भंगा। [1784-1 प्र.] भगवन् ! (बहुत) जीव वेदनीयकर्म का बेदन करते हुए कितनी कर्मप्रकृतियां बांधते हैं ? [1784-1 उ.] गौतम ! 1. सभी जीव सात के, पाठ के और एक के बन्धक होते हैं, 2. अथवा बहुत-से जीव सात, आठ या एक के बन्धक होते हैं और एक छह का बन्धक होता है। 3. अथवा बहुत से जीव सात, आठ, एक तथा छह के बन्धक होते हैं, 4-5. प्रबन्धक के साथ भी दो भंग कहने चाहिए, 6-9. अथवा बहुत जीव सात के, पाठ के, एक के बंधक होते हैं तथा कोई एक छह का बन्धक होता है तथा कोई एक प्रबन्धक भी होता है, यों चार भंग होते हैं। कुल मिलाकर ये नौ भंग हुए। [2] एगिदियाणं अभंगयं / 1784-2] एकेन्द्रिय जीवों को इस विषय में अभंगक जानना चाहिए। [3] णारगादीणं तियभंगो, जाव वेमाणियाणं / णवरं मणूसाणं पुच्छा। गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगाय 1 अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधए य अट्टविहबंधए य प्रबंधए य, एवं एते सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा जहा किरियासु पाणाइवायविरतस्स (सु. 1643) / [1784-3] नारक आदि यावत् वैमानिकों तक के तीन-तीन भंग कहने चाहिए। [प्र] मनुष्यों के विषय में वेदनीयकर्म के वेदन के साथ कर्मप्रकृतियों के बन्ध की पृच्छा ? [उ.] गौतम ! १-बहुत-से सात के अथवा एक के बन्धक होते हैं। २–अथवा बहुत-से मनुष्य सात के और एक के बन्धक तथा कोई एक छह का, एक पाठ का बन्धक है या फिर प्रबन्धक होता है / इस प्रकार ये कुल मिलाकर सत्ताईस भंग (सू. 1643 में उल्लिखित हैं) जैसे—प्राणातिपातविरत की क्रियाओं के विषय में कहे हैं, उसी प्रकार कहने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org