________________ 92] [प्रज्ञापनासूत्र (9) अथवा बहुत-से सात के, बहुत-से पाठ के, बहुत-से छह के और बहुत-से एक के बन्धक होते हैं। इस प्रकार समुच्चय जीवों के विषय में ये (उपर्युक्त) 9 भंग होते हैं / छह और एक प्रकृति के बन्ध का तथा इन दोनों के अभाव में सात अथवा पाठ प्रकृतियों के बन्ध का कारण पूर्वोक्त युक्ति से समझ लेना चाहिए। एकेन्द्रियों और मनुष्यों के सिवाय शेष नैरयिक आदि दण्डकों के तीन अंग होते हैं / एकेन्द्रियों में कोई विकल्प (भंग) नहीं होता, अर्थात्-वे सदैव बहुत संख्या में होते हैं, इसलिए बहुत सात के और बहुत पाठ के बंधक ही होते हैं। मनुष्यों में 27 भंगों का चार्ट इस प्रकार है-(ब. से बहुत और ए. से एक समझना चाहिए।) क्रमः 1 / 2 / 3 / 4 5 6 7 =असंयोगी=१ भंग | सभी | ब. एक / ब. ब. . ब. एक | ब. ब. [ ब. एक | व. ब. | = द्विकसंयोगी 6 भंग कुल 7 भंग . / ब. एक एक | ब. ब. ब. | ब. ब. एक | ब. एक ब. | . -पाठ और छह बन्धक के त्रिकसंयोगी भंग 4 . .. .. ब. एक एक ........... . . ब. ब. ब. | ब. ब. एक | ब. एक ब. . = पाठ और एक के बंधक के त्रिकसंयोगी भंग 4 17 ब. एक. एक | ब. ब. ब. 18 19 ब. ब. एक | ब. एक ब. | | = सात और एक के बंधक के त्रिकसंयोगी भंग 4 / 20 21 ब. ए. ए. ए. | ब. ब. ब. ब. 22 ब. ब. ए. ए. ----- -- ----- ब. ब. ब. ए. / 24 ब. ब. ए. ब. 25 ब. ए. ब. ब. 26 ब. ए. ए. ब. 27 | =8,6,1 बंधक चतुष्कसंयोगी भंग 8' ब. ए. ब. ए. वेदनीयकर्म के वेदन के समय अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध की प्ररूपणा 1783. [1] जीवे णं भंते ! वेयणिज्ज कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडोलो बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा छविहबंधए वा एगविहबंधए वा प्रबंधए वा। [1783-1 प्र.] भगवन् ! (एक) जीव वेदनीयकर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? 1. (क) पण्णवणासुत्त भा. 1 (मू. पा. टि.), पृ. 389 (ख) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, (अभिधान राजेन्द्रकोष भा. 3) पद 26, पृ. 294-295 (ग) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. 5, पृ. 501 से 511 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org