________________ 90]] [प्रज्ञापनासूत्र एगविहबंधगा य 5 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य छविहबंधए य एगविहबंधए य 6 अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगा य छविहबंधए य एगविहबंधगा य 7 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य छविहबंधगा य एगविहबंधए य 8 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छविहबंधगा य एगविहबंधगा य 6, एवं एते नब भंगा। [1778 प्र.] भगवन् ! (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हुए कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? [1778 उ.] गौतम ! 1. सभी जीव सात या पाठ कर्मप्रकृतियों के बंधक होते हैं, 2. अथवा बहुत जीव सात या पाठ के बंधक होते हैं और एक छह का बंधक होता है, 3. अथवा बहुत जीव सात, पाठ और छह के बंधक होते हैं, 4. अथवा बहत जीव सात के और पाठ के तथा कोई एक प्रकृति का बंधक होता है, 5. अथवा बहुत जीव सात, पाठ और एक के बंधक होते हैं, 6. या बहुत जीव सात के तथा पाठ के, एक जीव छह का और एक जीव एक का बंधक होता है, 7. अथवा बहुत से जीव सात के या पाठ के, एक जीव छह का और बहुत जीव एक के बंधक होते हैं, 8. अथवा बहुत जीव सात के, आठ के, छह के तथा एक के बंधक होते हैं / इस प्रकार ये कुल नौ भंग हुए / 1776. अवसेसाणं एगिदिय-मणूसवज्जाणं लियभंगो जाव वेमाणियाणं / [1779] एकेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों को छोड़कर शेष जीवों यावत् वैमानिकों तक के तीन भंग कहने चाहिए। 1780. एगिदिया णं सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य / [1780] (बहुत-से) एकेन्द्रिय जीव सात के और आठ के बन्धक होते हैं। 1781. मणसाणं पुच्छा। गोयमा ! सत्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा 1 अहवा सत्तविहबंधगा य अढविहबंधगे य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य 3 अहवा सत्तविहबंधगा य छविहबंधए य, एवं छविहबंधएण वि समं दो भंगा 5 एगविहबंधएण वि समं दो भंगा 7 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधए य छबिहबंधए य चउभंगो 11 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधए य एगविहबंधए य चउभंगो 15 प्रहवा सत्तविहबंधगा य छविहबंधगे य एगविहबंधए य चउभंगो 19 अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधए य छम्विहबंधए य एगविहबंधए य भंगा अट्ठ 27, एवं एते सत्तावीसं भंगा। [1781 प्र.] पूर्ववत् मनुष्यों के सम्बन्ध में प्रश्न है। [1781 उ.] गौतम ! (1) सभी मनुष्य सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, (2) अथवा बहुत-से सात और एक आठ कर्मप्रकृति बांधता है, (3) अथवा बहुत-से मनुष्य सात के और एक छह का बन्धक है, (4-5) इसी प्रकार छह के बन्धक के साथ भी दो भंग होते हैं, (6-7) तथा एक के बन्धक के साथ भी दो भंग होते हैं, (8-11) अथवा बहुत-से सात के बन्धक, एक पाठ का और एक छह का बन्धक, यों चार भंग हुए, (12-15) अथवा बहुत-से सात के बन्धक, एक पाठ का और एक मनुष्य एक प्रकृति का बन्धक, यों चार भंग हुए, (16-19) अथवा बहुत-से सात के बन्धक तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org