________________ छयीसवाँ कर्मवेवबन्धपद] [91 एक छह का और एक, एक का बन्धक, इसके भी चार भंग हुए, (20-27) अथवा बहुत-से सात के बंधक, एक पाठ का, एक छह का और एक, एक कर्मप्रकृति का बन्धक होता है, यों इसके पाठ भंग होते हैं / कुल मिलाकर ये सत्ताईस भंग होते हैं। 1782. एवं जहा णाणावरणिज्ज तहा दरिसणावरणिज्ज पि अंतराइयं पि। [1782] जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक का कथन किया, उसी प्रकार दर्शनावरणीय एवं अन्तरायकर्म के बन्धक का कथन करना चाहिए / विवेचन-प्रस्तुत पद में कर्मसिद्धांत के इस पहल पर विचार किया गया है कि कौन जीव किस-किस कर्म का वेदन करता हुआ किस-किस कर्म का बन्ध करता है ? अर्थात् किस कर्म का उदय होने पर किस कर्म का बन्ध होता है, इस प्रकार कर्मोदय और कर्मबन्ध के सम्बन्ध का निरूपण किया गया है। ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन और बन्ध- (1) कोई जीव प्रायु को छोड़कर 7 कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है, (2) कोई आठों का बन्ध करता है, (3) कोई आयु और मोह को छोड़कर छह कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है, (4) उपशान्तमोह और क्षीणमोह केवल एक वेदनीयकर्म का बन्ध करता है, (5) सयोगीकेवली ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन ही नहीं करते। नैरयिक से लेकर वैमानिक तक पूर्वोक्त युक्ति से ज्ञानावरण का वेदन करते हुए 7 या 8 कर्मप्रकृतियों का बन्ध करते हैं / मनुष्य सम्बन्धी कथन--मनुष्य सामान्य जीववत् ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ सात, पाठ, छह या एक प्रकृति का बन्ध करता है। बहुत्व की विवक्षा से--बहुत समुच्चय जीवों के विषय में नौ भंग (1) सभी ज्ञानावरणीयकर्मवेदक जीव 7 या 8 कर्मों के बन्धक होते हैं। (2) अथवा बहुत-से सात के बन्धक, वहुत-से पाठ के बन्धक और कोई एक जीव छह का बन्धक होता है / (सूक्ष्मसम्पराय की अपेक्षा से)। (3) बहुत-से सात के, बहुत-से पाठ के और बहुत-से छह के बन्धक होते हैं / (4) अथवा बहुत-से सात के कौर बहुत-से पाठ के बन्धक होते हैं और कोई एक जीव (उपशान्तमोह या क्षीणमोह) एक का बन्धक होता है / (5) अथवा बहुत-से सात के, बहुत-से आठ के और बहुत से एक के बन्धक होते हैं / (6) अथवा बहुत-से सात के और बहुत-से आठ के बन्धक होते हैं तथा एक जीव छह का और एक जीव एक का बन्धक होता है / (7) अथवा बहुत-से जीव सात के और बहुत-से जीव पाठ के बन्धक होते हैं तथा एक छह का बन्धक होता है एवं बहुत-से (उपशान्तमोह और क्षीणमोह गुणस्थान वाले) एक के बन्धक होते हैं / (8) अथवा बहुत-से सात के, बहुत-से पाठ के एवं बहुत-से छह के बन्धक होते हैं और कोई एक जीव एक का बन्धक होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org