________________ छव्वीसइमं कम्मवेयबंधपयं छव्वीसवा कर्मवेदबन्धपद ज्ञानावरणीयादि कर्मों के वेदन के समय अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध का निरूपण 1775. [1] कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्तायो ? गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्तानो / तं जहा–णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं / [1775-1 प्र. भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही हैं ? [1775-1 उ.] गौतम कर्मप्रकृतियाँ आठ कही हैं / यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय / [2] एवं गैरइयाणं जाव वेमाणियाणं / [1775-2] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक पाठ कर्मप्रकृतियाँ होती हैं 1776. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा। [1776 प्र.] भगवन् ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुअा कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? / [1776 उ.] गौतम ! वह सात, आठ, छह या एक कर्मप्रकृति का बंध करता है। 1777. [1] रइए णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीयो बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अढविहबंधए वा। [1777-1 प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? [1777-1 उ.] गौतम ! वह सात या आठ कर्मप्रकृतियों का बंध करता है। [2] एवं जाव वेमाणिए / णवरं मणूसे जहा जोवे (सु. 1776) / / [1777-2] इसी प्रकार (असुरकुमारादि भवनपति से लेकर) यावत् वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। परन्तु मनुष्य का कथन (सू. 1776 में उल्लिखित) सामान्य जीव के कथन के समान है। 1778. जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं वेदेमाणा कति कम्मपगडीयो बंधंति ? गोयमा! सन्चे विताव होज्जा सत्तविहबंधगा य प्रदबिहबंधगा य 1 अहवा सत्तविहबंधगा य अढविहबंधगा य छविहबंधए य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगा य छविहबंधगा य 3 अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगा य एगविहबंधगे य 4 अहवा सत्तविहबंधगा य अढविहबंधगा य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org