Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ कम] [प्रजापनासूत्र करते हैं और सयोगी केवली चार अघाति कर्मप्रकृतियों का ही वेदन करते हैं, क्योंकि उनके चार घातिकर्मों का उदय नहीं होता। 4. समुच्चय जीव के समान एकत्व और बहुत्व की विवेक्षा से मनुष्य के विषय में भी ऐसा गहिए / अर्थात-एक या बहत मनष्य वेदनीयकर्म का बन्ध करते हए सात, पाठ या चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं / 5. मनुष्य के सिवाय शेष सभी नारक मादि जीव एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से वेदनीय. कर्म का बन्ध करते हुए नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं।' ॥प्रज्ञापना भगवती का पच्चीसवाँ कर्मबन्धवेदपद सम्पूर्ण / 1. (क) पण्णवणासुत्तं भाग 1 (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. 388 (ख) प्रज्ञापनासूत्र भा. 5 (प्रमेयबोधिनी टीका), पृ. 489-490 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org