________________ [प्रतापनासूत्र [1767.1 प्र.] भगवन् ! आयुकर्म को बांधता जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधता है ? [1767-1 उ.] गौतम ! नियम से पाठ प्रकृतियां बांधता है। नैरयिकों से लेकर वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में इसी प्रकार कहना चाहिए / [2] एवं पुहत्तेण वि। [2] इसी प्रकार बहुतों के विषय में भी कहना चाहिए / 1768. [1] णाम-गोय-अंतरायं बंधमाणे जोवे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! जानो णाणावरणिज्जं बंधमाणे बंधइ ताहि भाणियन्वो / [1768-1 प्र.] भगवन् ! नाम, गोत्र और अन्तरायकर्म को बांधता जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? [1768-1 उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीय को बाँधने वाला जिन कर्मप्रकृतियों को बांधता है, वे ही यहां कहनी चाहिए। [2] एवं रइए वि जाव वेमाणिए। [1768-2] इसी प्रकार नारकों से लेकर वैमानिक तक कहना चाहिए / [3] एवं पुहत्तेण वि भाणियन्वं / [1768-3] इसी प्रकार बहुवचन में भी समझ लेना चाहिए / // पण्णवणाए भगवतीए चउवीसइमं कम्मबंधपदं समत्तं / / विवेचन–वेदनीय कर्मबन्ध के समय अन्य प्रकृतियों का बन्ध–वेदनीय बन्ध के साथ कोई जीव सात का कोई पाठ का और कोई छह का बंधक होता है, उपशान्त मोह आदि वाला कोई एक ही प्रकृति का बंधक होता है। मनुष्य के सम्बन्ध में भी यही कथन समझना चाहिए / नारकादि कोई सात और कोई पाठ के बन्धक होते हैं।। बहुत जीव (समुच्चय)पद में सभी सात के या बहुत अाठ के, बहुत-से एक के, कोई एक छह का बंधक होता है। अथवा बहत सात के, बहत आठ के. बहत एक के और बहत छह के बन्धक होते हैं / शेष नारकों से वैमानिकों तक में ज्ञानावरणीयकर्मबंध के कथन के समान है / मनुष्यों के सम्बन्ध में भंग मूल पाठ में उल्लिखित हैं। मोहनीय का बन्धक समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय मोहनीय कर्मबन्ध के समय 7 या 8 के बंधक होते हैं। मोहनीयकर्म का बन्धक छह प्रकृतियों का बंधक नहीं हो सकता, क्योंकि 6 प्रकृतियों का बंध सूक्ष्मसम्पराय नामक दसवें गुणस्थान में होता है, मोहनीय का बंधक नौवें गुणस्थान तक ही होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org