________________ 80] [प्रज्ञापनासूत्र [१७५७-प्र.] भगवन् ! (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधते हैं ? | १७५७-उ.] गौतम ! १-सभी जीव सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं; २-अथवा बहुत से जीव सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक और कोई एक जीव छह का बन्धक होता है; ३--अथवा बहुत से जीव सात, पाठ या छह कर्म प्रकृतियों के बन्धक होते हैं / 1758. [1] रइया णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीयो बंधति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा 1 अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगे य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य अढविहबंधगा य, 3 तिण्णि भंगा। [१७५८-१-प्र.] भगवन् ! (बहुत से) नैरयिक ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियाँ बांधते हैं ? [1758-1 उ.] गौतम ! 1 सभी नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं अथवा बहुत से नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक और एक नैरयिक पाठ कर्म-प्रकृतियों का बन्धक होता है, ३-अथवा बहुत से नै रयिक सात या पाठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं। ये तीन भंग होते हैं। [2] एवं जाव थणियकुमारा। [1758-2] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए / 1756. [1] पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा ! सत्तविहबंधगा वि अविहबंधगा वि / [1756-1 प्र.] भगवन् ! (बहुत) पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधते हैं ? [1756-1 उ.] गौतम! वे सात कर्मप्रकृतियों के भी बन्धक होते हैं, आठ कर्मप्रकृतियों के भी। [2] एवं जाव वणस्सतिकाइया। [1756-2] इसी प्रकार यावत् (बहुत) वनस्पतिकायिक जीवों के सम्बन्ध में कहना चाहिए। 1760. वियलाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य तियभंगो-सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा 1 अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधए य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य 3 / / 1760] विकलेन्द्रियों और तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रियजीवों के तीन भंग होते हैं-१. सभी सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, 2. अथवा बहुत-से सात कर्मप्रकृतियों के और कोई एक पाठ कर्मप्रकृतियों का बन्धक होता है, 3. अथवा बहुत-से सात के तथा बहुत-से आठ कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं। 1761. मणूसा णं भंते ! णाणावरणिज्जस्स पुच्छा। गोयमा ! सवे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा 1 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य 2 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य 3 अहवा सत्तविहबंधगा य छविहबंधए य 4 अहवा सत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org