Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तेईसवाँ कम पद [77 1749. उक्कोसकालठितीयं णं भंते ! आउअं कम्मं कि रइओ बंधइ जाव देवी बंधइ ? गोयमा ! णो णेरइयो बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधति, णो तिरिक्खजोणिणी बंधति, मणुस्सो वि बंधति, मणुस्सी वि बंधति, णो देवो बंधति, णो देवी बंधइ / [1749 प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को क्या नैरयिक बांधता है, यावत् देवी बांधती है ? [1749 उ.] गौतम ! उसे नारक नहीं बांधता, तिर्यञ्च बांधता है, किन्तु तिर्यञ्चिनी, देव या देवी नहीं बांधती, मनुष्य बांधता है तथा मनुष्य स्त्री भी बांधती है। 1750. केरिसए णं भंते ! तिरिक्खिजोणिए उक्कोसकालठितीयं आउयं कम्मं बंधति ? गोयमा ! कम्मभूमए वा कम्मभूमगपलिभागी वा सग्णी पंचेंहिए सव्वाहि पज्जत्तीहिं पज्जत्तए सागारे जागरे सुतोवउत्ते मिच्छट्ठिी परमकिण्हलेस्से उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे, एरिसए गं गोयमा ! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीयं पाउअं कम्मं बंधति / [1750 प्र.] भगवन् ! किस प्रकार का तिर्यञ्च उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है ? [1750 उ.] गौतम ! जो कर्मभूमि में उत्पन्न हो अथवा कर्मभूमिज के समान हो, संजीपंचेन्द्रिय, सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकारोपयोग वाला हो, जाग्रत हो, श्रुत में उपयोगवान्, मिथ्यादृष्टि परमकृष्णलेश्यावान् एवं उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला हो, ऐसा तिर्यञ्च उत्कृष्ट स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है। 1751. केरिसए णं भंते ! मणूसे उक्कोसकालठितीयं प्राउयं कम्मं बंधति ? गोयमा ! कम्मभूमगे वा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ते सम्मट्टिी वा मिच्छट्ठिी वा कण्हलेसे वा सुक्कलेसे वा णाणी वा अण्णाणी वा उक्कोससंकिलिपरिणामे वा तप्पाउग्गविसुज्झमाणपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा! मणूसे उक्कोसकालठिईयं प्राउअं कम्मं बंधति। 1751 प्र.] भगवन् ! किस प्रकार का मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है ? [1751 उ.] गौतम ! जो कर्मभूमिज हो अथवा कर्मभूमिज के सदृश हो यावत् श्रुत में उपयोग वाला हो, सम्यग्दृष्टि हो अथवा मिथ्यादृष्टि हो, कृष्णलेश्यी हो या शुक्ललेश्यी हो, ज्ञानी हो या अज्ञानी हो, उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला हो, अथवा तत्प्रायोग्य विशुद्ध होते हुए परिणाम वाला हो, हे गौतम ! इस प्रकार का मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है। 1752. केरिसिया णं भंते ! मणूसी उक्कोसकालठितीयं प्राज्यं कम्मं बंधइ ? ___ गोयमा ! कम्मभूमिगा वा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ता सम्मद्दिट्ठि सुक्कलेस्सा तप्पाउग्गविसुज्ञमाणपरिणामाएरिसिया णं गोयमा! मणुस्सी उक्कोसकालाठितीयं प्राज्यं कम्मं बंधति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org