Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तेईसवाँ कर्मपद] [55 [1702-57 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तःकोडाकोडी सागरोपम की कही गई है। [58] एवं जत्थ एगो सत्तभागो तत्थ उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडी दस या वाससयाई अबाहा। जत्थ दो सत्तभागातत्थ उक्कोसेणं वीसंसागरोवमकोडाकोडीयो वीस य वाससयाइं प्रबाहा० / [1702-58] जहाँ (जघन्य स्थिति सागरोपम के) : भाग की हो, वहाँ उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का (समझना चाहिए) एवं जहाँ (जघन्य स्थिति सागरोपम के) भाग की हो, वहाँ उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का (समझना चाहिए)। 1703. [1] उच्चागोयस्स पुच्छा। गोयमा ! जहणणं अट्ट मुहत्ता, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाई अबाहा०। [1703-1 प्र.] भगवन् ! उच्चगोत्रनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? [1703-1 उ.] गौतम ! इसकी स्थिति जघन्य पाठ मुहूर्त की और उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम की है तथा इसका अबाधाकाल दस सौ वर्ष का है / [2] गोयागोयस्स पुच्छा। गोयमा ! जहा अपसस्थविहायगतिणामस्स / [1703.2 प्र.] भगवन् ! नीचगोत्रकर्म की स्थिति सम्बन्धी प्रश्न ? [1703-2 उ.] गौतम ! अप्रशस्तविहायोगतिनामकर्म की स्थिति के समान इसकी स्थिति है। 1704. अंतराइयस्स णं० पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडोप्रो; तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, प्रबाहूणिया कम्मठितो कम्मणिसेगे। [1704 प्र. भगवन् ! अन्तरायकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [1704 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागरोपम की है तथा इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है एवं अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्मस्थिति कर्मनिषेककाल है। विवेचन–प्रस्तुत प्रकरण के (सू. 1697 से 1704 तक) में ज्ञानावरणीय से लेकर अन्तरायकर्म तक (मूलउत्तरकर्म प्रकृतियों सहित) की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण किया गया है / साथ ही अपृष्ट प्रश्न के व्याख्यान के रूप में इन सब कर्मों के अबाधाकाल तथा निषेककाल के विषय में भी कहा गया है। 1. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 371 से 377 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org