________________ [65 तेईसवाँ कर्मपद] एकेन्द्रिय जीवों की बन्धस्थिति का रेखाचित्र क्रम कर्मप्रकृति का नाम जघन्य बन्धस्थिति 1. ज्ञानावरणीयकर्म (पंचक) पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का भाग निद्रापंचक, दर्शनावरणचतुष्क 2. तिर्यञ्चायु नामकर्म अन्तर्मुहर्त की उत्कृष्ट बन्धस्थिति पूरे सागरोपम का भाग सात हजार तथा एक हजार वर्ष का तृतीय भाग अधिक करोड़ पूर्व की पूरे सागरोपम का भाग 3. सातावेदनीय, स्त्रीवेद, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी 4. सम्यक्त्ववेदनीय और मिश्र वेदनीय (मोहनीय) कर्म 5. मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का " भाग बन्ध नहीं बन्ध नहीं पूरे सागरोपम की 6. कषायषोडशक (मोलह कषाय) पूरे सागरोपम के भाग की पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम की पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की पूरे सागरोपम के भाग को 7. पुरुषवेद, हास्य, रति, प्रशस्त विहा योगति, स्थिरादिषट्क समचतुरस्रसंस्थान, वज्रऋषभनाराच संहनन, शुक्लवर्ण, सुरभिगन्ध, मधुर रस और उच्चगोत्र, यश कीर्ति 8. द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-जातिनाम चतुरि न्द्रिय-जातिनाम 9. नरकायु, देवायु, नरकगतिनाम, देवगतिनाम, वैक्रियशरीर, (वैक्रिय चतुष्टय), आहारक शरीर (आ. चतुष्टय) नरकानुपूर्वी, देवानुपूर्वी, तीर्थकरनामकर्म 10. द्वितीय संस्थान, द्वितीय संहनन पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की पूरे सागरोपम के 5 भाग की इन नौ पदों का बन्ध नहीं बन्ध नहीं पूरे सागरोपम के 3 भाग 11, तीसरा संस्थान, तीसरा संहनन पूरे सागरोपम के 3 भाम 12. रक्तवर्ण, कषायरस पूरे सागरोपम के SE भाग 13. पोलावर्ण, अम्ल रस पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के कुन भाग की पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के इन भाग की पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 5 भाग की पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 1 भाग की पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग को पूरे सागरोपम के 58 भाग 14. नीलवर्ण, कटुकरस पूरे सागरोपम के भाग 15 पूरे सागरोपम के भाग की नपुंसक वेद, भय, शोक जुगुप्सा,अरति, तिर्यञ्चद्विक, प्रौदारिकद्विक, अन्तिम संस्थान, अन्तिम संहनन, कृष्णवर्ण, तिक्तरस, अगुरुलधु, उपधात, पराघात, उच्छवास, श्रम, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, अस्थिरादिषट्क, स्थावर, पातप, उद्योत, अप्रशस्त निहायोगति निर्माण, एकेन्द्रिय पंचेन्द्रिय जाति तेजस, काभण शरीरनाम " - - 1. (क) पण्णवणासुतं भा. 1 (ख) प्रज्ञापनाशूत्र भा. 5 (प्रमेयबोधिनी टोकासहित) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org