________________ तेईसवाँ कर्मपद] [1702-42 प्र.] प्रशस्तविहायोगति-नामकर्म की स्थिति के विषय में प्रश्न ? [1702-42 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की और उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है / दस सौ (एक हजार) वर्ष का इसका अबाधाकाल है / [43] अपसत्थविहायगतिणामस्स पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा पलिश्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उकोसेणं वीसं सागरोक्मकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा० / [1702-43 प्र.] अप्रशस्तविहायोगतिनामकर्म की स्थिति-विषयक प्रश्न ? [1702-43 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 3 भाग की है तथा उत्कृष्ट स्थिति वीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है। [44] तसणामए थावरणामए य एवं चेव / [1702-44] त्रसनामकर्म और स्थावरनामकर्म को स्थिति भी इसी प्रकार जाननी चाहिए। [45] सुहुमणामए पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागा पलिप्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीनो; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा / [1702-45 प्र.] सूक्ष्मनामकर्म की स्थिति-सम्बन्धी प्रश्न ? [1702-45 उ.] गौतम ! इसकी स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ईपू भाग की और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अट्ठारह सौ वर्ष का है। [46] बादरणामए जहा अपसत्यविहायगतिणामस्स (सु. 1702 [43]) / [1702-46] बादरनामकर्म की स्थिति (सू. 1702-43 में उल्लिखित) अप्रशस्तविहायोगति की स्थिति के समान जानना चाहिए। [47] एवं पज्जत्तगणामए वि / अपज्जत्तगणामए जहा सुहुमणामस्स (सु. 1702[45]) / [1702-47] इसी प्रकार पर्याप्तनामकर्म की स्थिति के विषय में जानना चाहिए। अपर्याप्तनामकर्म की स्थिति (सू. 1702-45 में उक्त) सूक्ष्मनामकर्म की स्थिति के समान है। [48] पत्तेयसरीरणामए वि दो सत्तभागा। साहारणसरीरणामए जहा सुहुमस्स / __ [1702-48] प्रत्येकशरीरनामकर्म की स्थिति भी भाग की है / साधारणशरीरनामकर्म की स्थिति सूक्ष्मशरीरनामकर्म की स्थिति के समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org