________________ 52 // {সনানুগ [37] तिरियाणुपुखीए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागा पलिश्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं बीस सागरोवमकोडाकोडीनो; वीस य वाससयाई अबाहा। [1702-37 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चानुपूर्वी की स्थिति कितने काल की कही है ? [1702-37 उ] गौतम ! इसको जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 3 भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है। [38] मणुयाणुपुग्विणामए णं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं सागरोवमस्स दिवढं सत्तमागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीमो; पण्णरस य वाससयाई अबाहा। [1702-38 प्र.] मनुष्यानुपूर्वीनामकर्म की स्थिति के विषय में प्रश्न ? [1702-38 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के " भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। [36] देवाणुपुचिणामए पुच्छा। गोयमा ! जहणणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिनोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाइं अबाहा० / [1702-36 प्र.] भगवन् ! देवानुपूर्वीनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? [1702-36 उ.] इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का है / [40] उस्सासणामए पुच्छा। गोयमा ! जहा तिरियाणुपुवीए / [1702-40 प्र.] भगवन् ! उच्छ्वासनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [1702-40 उ.] गौतम ! इसकी स्थिति तिर्यञ्चानुपूर्वी (सू. 1702-37 में उक्त) के समान है। [41] आयवणामए वि एवं चेव, उज्जोवणामए वि। [1702-41] आतप-नामकर्म की स्थिति भी इसी प्रकार जाननी चाहिए, तथैव उद्योतनामकर्म की भी। [42] पसथविहायगतिणामए पुच्छा। गोयमा ! जहणणं एगं सागरोवमस्स सत्तभाग, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीयो दस य वाससयाई अबाहा० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org