________________ 48] [प्रज्ञापनासूत्र [1702-11 प्र.] भगवन् ! वैक्रिय-शरीर-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? [1702-11 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है / इसका अबाधाकाल बीस सौ वर्ष का है। [12] पाहारगसरीरणामए जहणेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीनो, उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ। [1702-12] आहारक-शरीर-नामकर्म की जघन्य स्थिति अन्तःकोडाकोडी की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तःसागरोपम कोडाकोडी की है। [13] तेया-कम्मसरीरणामए जहण्णणं [सागरोवमस्स] दोण्णि सत्तभागा पलिप्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीअो; बोस य वाससताइं प्रबाहा० / [1702-13] तैजस और कार्मण-शरीर-नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की है तथा उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है / इनका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है / [14] ओरालिय-वेउब्विय-पाहारगसरीरंगोवंगणामए तिण्णि वि एवं चेव / [1702-14] औदारिकशरीरांगोपांग, वैक्रियशरीरांगोपांग और आहारकशरीरांगोपांग, इन तीनों नामकर्मों की स्थिति भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) है। [15] सरीरबंधणणामए वि पंचण्ह वि एवं चेव / [1702-15] पांचों शरीरबन्धन-नामकर्मों की स्थिति भी इसी प्रकार है। [16] सरीरसंघायणामए पंचण्ह वि जहा सरीरणामए (सु. 1702 [10-13]) कम्मस्स ठिति त्ति। [1702-16] पांचों शरीरसंघात-नामकर्मों की स्थिति (सू. 1702-10-13 में उल्लिखित) शरीर-नामकर्म की स्थिति के समान है। [17] वइरोसभणारायसंघयणणामए जहा रतिणामए (सु. 1700 [12]) / __ [1702-17] वज्रऋषभनाराचसंहनन-नामकर्म की स्थिति (सू. 1700-12 में उल्लिखित) रति-नामकर्म की स्थिति के समान है। [18] उसभणारायसंघयणणामए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स छ पणतीसतिभागा पलिप्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं बारस सागरोवमकोडाकोडीनो; बारस य वाससयाई प्रवाहा। - [1702-18 प्र.] भगवन् ! ऋषभनाराचसंहनन-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org