________________ तेईसवां कर्मपद]] [47 [6] बेइंदियजातिणामए पं० पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा / [1702-6 प्र.] द्वीन्द्रिय-जाति-नामकर्म को स्थिति के विषय में प्रश्न / [1702-6 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के इवें भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है। [कर्मस्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्म-निषेक-काल है।] [7] तेइंदियजाइणामए णं जहणेणं एवं चेव, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीमो अट्ठारस य वाससताई अवाहा / [1702-7 प्र.] त्रीन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति-सम्बन्धी पृच्छा। [1702-7 उ.] इसको जघन्य स्थिति पूर्ववत् है / उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है। [8] चरिदियजाइणामए णं० पुच्छा। जहण्णणं सागरोवमस्स नव पणतीसतिभागा पलिग्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडोप्रो; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा० / [1702-8 प्र.] चतुरिन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न ? [1702-8 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यतावें भाग कम सागरोपम के भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है। [6] पंचेंदियजाइणामए णं० पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा पलिनोवमस्स असंखेज्जभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा० / [1702-6 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [1702-6 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 3 भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति बोस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है / [10] ओरालियसरीरणामए वि एवं चेव / [1702-10] औदारिक-शरीर-नामकर्म को स्थिति भी इसी प्रकार समझनी चाहिए / [11] वेउब्वियसरीरणामए णं भंते ! 0 पुच्छा। गोयमा! जहणणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वोसं सागरोवमकोडाकोडीमो; वीस य वाससताई अबाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org