________________ तेईसवां कर्मपद] [45 पम के 3 भाग की है और उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है। [12] हास-रतीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स एक्कं सत्तभागं पलिप्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससताई अबाहा। [1700-12 प्र.] हास्य और रति की स्थिति के विषय में पृच्छा। [1700-12 उ.] गौतम ! इनकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की है और उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम की है तथा इसका अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का है। [13] अरइ-भय-सोग-दुगुछाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा पलिग्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडोओ; वीसति वाससताई प्रवाहा। [1700-13 प्र.] भगवन् ! अरति, भय, शोक और जुगुप्सा (मोहनीयकर्म) की स्थिति कितने काल की है ? [1700-13 उ.] गौतम ! इनकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 3 भाग की है, और उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इनका अबाधाकाल बीस सौ . (दो हजार) वर्ष का है। 1701. [1] णेरड्याउयस्स पं० पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुख्वकोडोतिभागमभइयाई। [1701-1 प्र.] भगवन् ! नरयिकायु की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [1701-1 उ.] गौतम ! नैरयिकायु की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त-अधिक दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट करोड पूर्व के तृतीय भाग अधिक तेतीस सागरोपम की है। [2] तिरिक्खजोणियाउअस्स पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिग्रोवमाइं पुवकोडितिभागमभहियाई / [1701-2 प्र.] इसी प्रकार तिर्यञ्चायु की स्थिति सम्बन्धी प्रश्न ? [1701-2 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति है पूर्वकोटि के त्रिभाग अधिक तीन पल्योपम की। [3] एवं मणूसाउअस्स वि / [1701-3] इसी प्रकार मनुष्यायु की स्थिति के विषय में जानना चाहिए / [4] देवाउअस्स जहा णेरइयाउअस्स ठिति त्ति। [1701-4] देवायु की स्थिति नैरयिकायु की स्थिति के समान जाननी चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org