________________ प्रज्ञापनासूत्र ___ [1700-6 उ.] गोतम ! उसकी स्थिति जघन्य एक मास की है और उत्कृष्ट क्रोध की स्थिति के समान है। [7] मायासंजलणाए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अद्धमासं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स / [1700-7 प्र.] माया-संज्वलन की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न ? {1700-7 उ.] गौतम ! उसकी स्थिति जघन्य अर्धमास की है और उत्कृष्ट स्थिति क्रोध के बराबर है। [-] लोभसंजलणाए पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स। [1700.8 प्र.] लोभ-संज्वलन की स्थिति के विषय में प्रश्न ? [1700-8 उ.] गौतम ! इसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति क्रोध के समान, इत्यादि पूर्ववत् / [6] इत्थिवेदस्स पं० पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससताइं अबाहा० / [1700-6 प्र.] स्त्रीवेद की स्थिति-सम्बन्धी प्रश्न ? [1700-6 उ.] गौतम ! उसकी जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम सागरोपम के सात भागों में से डेढ भाग ( भाग) की है, और उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। [10] पुरिसवेयस्स णं० पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अट्ठ संवच्छराई, उक्कोसेणं वस सागरोवमकोडाकोडीमो; दस य वाससयाई अबाहा, जाव निसेगो। [1700-10 प्र.[ पुरुषवेद की स्थिति-सम्बन्धी प्रश्न ? [1700-10 उ.] इसकी जघन्य स्थिति पाठ संवत्सर (वर्ष) की है और उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दस सौ (एक हजार वर्ष) का है। निषेककाल पूर्ववत जानना। [11] नपुसगवेदस्स णं० पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दुणि सत्तभागा पलिओवमस्स प्रसंखिज्जहभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीनो; वीसति वाससताई अबाहा०।। [1700-11 प्र.] नपुंसकवेद की स्थिति-सम्बन्धी प्रश्न ? [1700-11 उ.] गौतम ! इसकी स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम, सागरो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org