Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तेईसवाँ कर्मपद] 1700. [1] सम्मत्तवेयणिज्जस्स पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावढि सागरोवमाई साइरेगाई। [1700-1 प्र.] भगवन् ! सम्यक्त्व-वेदनीय की स्थिति कितने काल की है ? [1700-1 उ.] गौतम ! उसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम की है। [2] मिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहणेणं सागरोवम पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं अणगं, उक्कोसेणं सरि कोडाकोडीनो; सत्त य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया० / [1700-2] मिथ्यात्व-वेदनीय की जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम एक सागरोपम की है और उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है तथा कर्म स्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर (शेष) कर्मनिषेककाल है / [3] सम्मामिच्छत्तवेदणिज्जस्स जहण्णणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [1700-3] सम्यग्-मिथ्यात्ववेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। [4] कसायबारसगस्स जहणणं सागरोवमस्स चत्तारि सत्तभागा पलिग्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; चत्तालोसं वाससताई अवाहा, जाव णिसेगो। [1700-4] कषाय-द्वादशक (आदि के बारह कषायों) की जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम सागरोपम के सात भागों में से चार भाग की (अर्थात 4 भाग की) है और उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल चालीस सौ (चार हजार) वर्ष का है तथा कर्म स्थिति में से अबाधाकाल बाद करने पर जो शेष बचे वह निषेककाल है / [5] कोहसंजलणाए पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं दो मासा, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीनो; चत्तालीसं वाससताई जाव णिसेगो। [1700-5 प्र.] संज्वलन-क्रोध-सम्बन्धी प्रश्न ? [1700-5 उ.] गौतम ! (संज्वलन-क्रोध की स्थिति) जघन्य दो मास की है और उत्कृष्ट चालीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल चालीस सौ वर्ष (चार हजार वर्ष) का है, यावत् निषेक अर्थात् –कर्मस्थिति (काल) में अबाधाकाल कम करने पर (शेष) कर्मनिषेककाल समझना। [6] माणसंजलणाए पुच्छा। गोयमा ! जहणणं मासं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स। [1700-6 प्र.] मान-संज्वलन की स्थिति के विषय में प्रश्न ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org