________________ तेईसवां कर्मपद] [17 रइयाउए 1 तिरियाउए 2 मणुयाउए 3 देवाउए 4 / जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसि वा उदएणं आउयं कम्मं वेदेति / एस गं गोयमा ! पाउए कम्मे / एस णं गोयमा ! पाउअस्स कम्मस्स जाव चउम्बिहे अणुभावे पण्णते 5 / [1683 प्र. भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् आयुष्यकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [1683 उ.] गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् आयुष्यकर्म का चार प्रकार का अनुभाव कहा गया है / यथा-१. नारकायु, 2. तिर्यंचायु, 3. मनुष्यायु और 4. देवायु / जिस पुद्गल अथवा पुद्गलों का, पुद्गल-परिणाम का अथवा स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का या उनके उदय से आयुष्यकर्म का वेदन किया जाता है, गौतम ! यह है—आयुष्यकर्म और यह आयुष्यकर्म का यावत् चार प्रकार का अनुभाव कहा गया है / / 5 / / 1684. [1] सुभणामस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं० पुच्छा। गोयमा ! सुभणामस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते / तं जहा–इट्ठा सद्दा 1 इट्ठा रूवा 2 इट्ठा गंधा 3 इट्टा रसा 4 इट्ठा फासा 5 इट्टा गती 6 इटा ठिती 7 इठे लावण्णे 8 इट्ठा जसोकित्ती 6 इठे उढाण-कम्म-बल-विरिय-पुरिसक्कार-परक्कमे 10 इट्ठस्सरता 11 कंतस्सरता 12 पियस्सरया 13 मणुष्णस्सरया 14 / जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसि वा उदएणं सुभणामं कम्मं वेदेति / एस णं गोयमा ! सुभनामे कम्मे / एस णं गोयमा ! सुभणामस्स कम्मस्स जाव चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते। [1684-1 प्र.) भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् शुभ नामकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि प्रश्न / [1684-1 उ.] गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् शुभ नामकर्म का चौदह प्रकार का अनुभाव कहा गया है / यथा--(१) इष्ट शब्द, (2) इष्ट रूप, (3) इष्ट गन्ध, (4) इष्ट रस, (5) इष्ट स्पर्श, (6) इष्ट गति, (7) इष्ट स्थिति, (8) इष्ट लावण्य, (8) इष्ट यशोकीति, (10) इष्ट उत्थानकर्म-बल-वीर्य-पुरुषकार-पराक्रम, (11) इष्ट-स्वरता, (12) कान्त-स्वरता, (13) प्रिय-स्वरता और (14) मनोज्ञ-स्वरता / जो पुद्गल अथवा पुद्गलों का या पुद्गल-परिणाम का अथवा स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है अथवा उनके उदय से शुभनामकर्म को वेदा जाता है, गौतम ! यह है शुभनामकर्म तथा गौतम ! यह शुभनामकर्म का यावत् चौदह प्रकार का अनुभाव कहा गया है / [2] दुहणामस्स णं भंते ! * पुच्छा। गोयमा! एवं चेव / गवरं प्रणिट्ठा सदा 1 जाव होणस्सरया 11 दीणस्सरया 12 प्रणिटुस्सरया 13 प्रकंतस्सरया 14 / जं वेदेति सेसं तं चेव जाव चोइसविहे अणुभावे पण्णत्ते 6 / [1684-2 प्र.] भगवन् ! अशुभनामकर्म का जीव के द्वारा बद्ध यावत् कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि पृच्छा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org