________________ 38] [प्रज्ञापनासूत्र (7) संघात-नामकर्म-जो औदारिक शरीर आदि के पुद्गलों को एकत्रित करता है अथवा जो शरीरयोग्य पुद्गलों को व्यवस्थित रूप से स्थापित करता है, उसे संघातनामकर्म कहते हैं / इसके 5 भेद हैं। (4) संस्थान-नामकर्म-संस्थान का अर्थ है--प्राकार / जिस कर्म के उदय से गहीत, संघातित और वद्ध औदारिक अादि पुद्गलों के शुभ या अशुभ आकार बनते हैं, वह संस्थान नामकर्म है। इसके 6 भेद हैं। (E) वर्णनामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर के काले, गोरे, भूरे आदि रंग होते हैं, अथवा जो कर्म वर्णो का जनक हो, वह वर्णनामकर्म है। इसके भी 5 भेद हैं / (10) गन्धनामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर में अच्छी या बुरी गंध हो अर्थात् शुभाशुभ गंध का कारणभूत कर्म गन्धनामकर्म है। (11) रसनामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर में तिक्त, मधुर आदि शुभ-अशुभ रसों की उत्पत्ति हो, अर्थात् यह रसोत्पादन में निमित्त कर्म है। (12) स्पर्शनामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर का स्पर्श कर्कश, मृदु, स्निग्ध, रूक्ष आदि हो, अर्थात् स्पर्श का जनक कर्म स्पर्शनामकर्म है। (13) प्रगुरुलघु-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीवों के शरीर न तो पाषाण के समान गुरु (भारी) हों और न ही रूई के समान लघु (हलके) हों, वह अगुरुलधु नामकर्म है / (14) उपघात-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से अपना शरीर अपने ही अवयवों से उपहतबाधित होता है, वह उपवात-नामकर्म कहलाता है। जैसे–चोरदन्त, प्रतिजिह्वा (पडजीभ) आदि / अथवा स्वयं तैयार किये हुए उबन्धन (फांसी), भृगुपात आदि से अपने ही शरीर को पोडित करने वाला कर्म उपघात-नामकर्म है। (15) पराघात-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से दूसरा प्रतिभाशाली, ओजस्वी, तेजस्वी जन भी पराजित या हतप्रभ हो जाता है, दब जाता है, उसे पराघात-नामकर्म कहते हैं / (16) आनुपूर्वी-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव दो, तीन या चार समय-प्रमाण विग्रहगति से कोहनी, हल या गोमूत्रिका के आकार से भवान्तर में अपने नियत उत्पत्तिस्थान पर पहुंच जाता है, उसे आनुपूर्वी-नामकर्म कहते हैं / (१७)उच्छवास-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव को उच्छ्वास-नि:श्वासलब्धि की प्राप्ति होती है, वह उच्छ्वास-नामकर्म है / (18) आतप-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर स्वरूप से उष्ण न होकर भी उष्णरूप प्रतीत होता हो, अथवा उष्णता उत्पन्न करता हो, वह पातप-नामकर्म कहलाता है। (16) उद्योत-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से प्राणियों के शरीर उष्णतारहित प्रकाश से युक्त होते हैं, वह उद्योतनामकर्म हैं / जैसे-रत्न, ओषधि, चन्द्र, नक्षत्र, तारा विमान, यति आदि / (20) विहायोगति-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव की चाल (गति) हाथी, बैल आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org