________________ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] [15 ज्ञानावरणीयकर्म के उदय से जो पुद्गल को अथवा पुद्गलों को या पुद्गल-परिणाम को अथवा स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम को वेदता है, उनके उदय से जानने योग्य को नहीं जानता, जानने का इच्छुक होकर भी नहीं जानता, जानकर भी नहीं जानता अथवा तिरोहित ज्ञान वाला होता है / गौतम ! यह है ज्ञानावरणीयकर्म / हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को प्राप्त करके ज्ञानावरणीयकर्म का दस प्रकार का यह अनुभाव कहा गया है / / 1 / / 1680. दरिसणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णते ? गोयमा ! दरिसणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णते। तं जहा--णिद्दा 1 णिहाणिद्दा 2 पयला 3 पयलाफ्यला 4 थीणगिद्धी 5 चक्खुदंसणावरणे 6 अचक्खुदसणावरणे 7 प्रोहिदसणावरणे 8 केवलदसणावरणे / / जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसि वा उदएणं पासियवं ण पासति, पासिउकामे वि ण पासति, पासित्ता वि ण पासति, उच्छन्नदसणी यावि भवति दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं / एस णं गोयमा ! दरिसणावरणिज्जे कम्मे / एस णं गोयमा ! दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स जोवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते 2 / [1680 प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? [1680 उ.] गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को प्राप्त दर्शनावरणीयकर्म का नौ प्रकार का अनुभाव कहा गया है / यथा--१. निद्रा, 2. निद्रा-निद्रा, 3. प्रचला, 4. प्रचलाप्रचला तथा 5. स्त्यानद्धि एवं 6. चक्षुदर्शनावरण, 7. अचक्षुदर्शनावरण, 8. अवधिदर्शनावरण और 6. केवलदर्शनावरण / दर्शनावरण के उदय से जो पुद्गल या पुद्गलों को अथवा पुद्गल-परिणाम को या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम को वेदता है, अथवा उनके उदय से देखने योग्य को नहीं देखता, देखना चाहते हुए भी नहीं देखता, देखकर भी नहीं देखता अथवा तिरोहित दर्शन वाला भी हो जाता है। गौतम ! यह है दर्शनावरणीयकर्म / हे गौतम ! जीव के द्वारा वद्ध यावत् पुद्गलपरिणाम को पाकर दर्शनावरणीयकर्म का नौ प्रकार का अनुभाव कहा गया है / / 2 // 1681. [1] सातावेदणिज्जस्स गं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णते? गोयमा ! सायावेदणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव अविहे अणुभावे पण्णते / तं जहा-मणुण्णा सदा 1 मणुष्णा रूवा 2 मणुण्णा गंधा 3 मणुण्णा रसा 4 मणण्णा फासा 5 मणोसुहता 6 वहसुहया 7 कायसुहया 8 / जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा बीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसि वा उदएणं सातावेदणिज्जं कम्मं वेदेति / एस णं गोयमा! सातावेदणिज्जे कम्मे / एस णं गोयमा ! सातावेयणिज्जस्स जाव अट्टविहे अणुभावे पण्णत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org