________________ तेईसवां कर्मपद] [6] सरीरसंघायणामे गं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते। तं जहा-पोरालियसरीरसंघातणामे जाव फम्मगसरोरसंघायणामे। [1664-6 प्र.] भगवन् ! शरीरसंघातनामकर्म कितने प्रकार का कहा है ? [1664-6 प्र.] गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है / यथा-औदारिकशरीरसंघात नामकर्म यावत् कार्मणशरीरसंघातनामकर्म / [7] संघयणणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! छबिहे पण्णत्ते / तं जहा-वइरोसभणारायसंघयणणामे 1 उसभणारायसंघयणणामे २णारायघसंयणणामे 3 प्रद्धणारायसंघयणणामे 4 कोलियासंघयणणामे 5 छेवट्टसंघयणणामे 6 / [1664-7 प्र.] भगवन् ! संहनननामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है। [1664-7 उ.] गौतम ! वह छह प्रकार का कहा है / यथा-(१) वज्रऋषभनाराचसंहनननाम, (2) ऋषभनाराचसंहनननाम, (3) नाराचसंहनननाम, (4) अर्द्धनाराचसंहनननाम, (5) कीलिकासंहनननाम और (6) सेवार्तसंहनननामक / [8] संठाणणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहे पण्णत्ते / तं जहा--समचउरंससंठाणणामे 1 णग्गोहपरिमंडलसंठाणणामे 2 सातिसंठाणणामे 3 वामणसंठाणणामे 4 खुज्जसंठाणणामे 5 हुंडसंठाणणामे 6 / [1664-8 प्र.] भगवन् ! संस्थाननामकर्म कितने प्रकार का कहा है ? [1664-8 उ.] गौतम ! वह छह प्रकार का कहा गया है। यथा-(१) समचतुरस्रसंस्थाननाम, (2) न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम, (3) सादिसंस्थाननाम, (4) वामनसंस्थाननाम, (5) कुब्जसंस्थाननाम और (6) हण्डकसंस्थाननामकर्म। [6] वण्णणामे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा-कालवण्णणामे जाव सुक्किलवण्णणामे / [1664-6 प्र.] भगवन् ! वर्णनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [1664-6 उ.] गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है। यथा-कालवर्णनाम यावत् शुक्लवर्णनाम। [10] गंधणामे णं भंते ! कम्मे पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-सुरभिगंधणामे 1 दुरभिगंधणामे 2 / [1664-10 प्र. भगवन् ! गन्धनामकर्म कितने प्रकार का कहा है ? [1664-10 उ] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है / यथा-सुरभिगन्धनाम और दुरभिगन्धनामकर्म। [11] रसणामे पं० पुच्छा / / गोयमा ! पंचविहे पण्णते / तं जहा-तित्तरसणामे जाव महररसणामे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org