________________ 28] [प्रजापनासून [1660-1 प्र.] भगवन् ! वेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [1660-1 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है / यथा-सातावेदनीय और असातावेदनीय / [2] सातावेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे पुच्छा। गोयमा ! प्रविहे पण्णत्ते / तं जहा -मणुण्णा सदा जाव कायसुहया (सु. 1681 [1]) / [1660-2 प्र.] भगवन् ! सातावेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [1660-2 उ.] गौतम ! वह आठ प्रकार का कहा गया है। यथा-(सू. 1681-1 के अनुसार) मनोज्ञ शब्द यावत् कायसुखता। [3] असायावेदणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! अट्ठविहे पण्णते। तं जहा-प्रमणुण्णा सहा जाव कायदुहया। [1690-3 प्र.] भगवन् ! असातावेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [1690-3 उ.] गौतम ! वह आठ प्रकार का कहा गया है। 1661. [1] मोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-दसणमोहणिज्जे य चरित्तमोहणिज्जे य / [1661-1 प्र.] भगवन् ! मोहनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है। [1661-1 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय / [2] दंसणमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णते? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते / तं जहा-सम्मत्तवेयणिज्जे 1 मिच्छत्तवेयणिज्जे 2 सम्मामिच्छतवेयणिज्जे 3 य / [1661-2 प्र.] भगवन् ! दर्शन-मोहनीयकर्म कितने प्रकार का कहा है ? {1661-2 उ.] गौतम ! दर्शन-मोहनीयकर्म तीन प्रकार का कहा गया है। यथा(१) सम्यक्त्ववेदनीय, (2) मिथ्यात्ववेदनीय और (3) सम्यग्-मिथ्यात्ववेदनीय / [3] चरितमोहणिज्जे गं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-कसायवेयणिज्जे य गोकसायवेयणिज्जे य / [1661-3 प्र.] भगवन् ! चारित्रमोहनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [1661-3 उ.) गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा-कषायवेदनीय और नोकषायवेदनीय / [4] कसायवेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णते? गोयमा! सोलसविहे पण्णते। तं जहा-प्रणताणुबंधी कोहे 1 अणंताणुबंधी माणे 2 अणंताणुबंधी माया 3 प्रणताणबंधी लोभे 4 अपच्चक्खाणे कोहे 5 एवं माणे 6 माया 7 लोभे 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org