________________ प्रकाशकीय आगमप्रेमी पाठकों के कर-कमलों में प्रज्ञापनासुत्र नामक चौथे उपांग का तृतीय खण्ड प्रस्तुत किया जा रहा है। इस खण्ड में 23 से 36 पद हैं और इन्हीं के साथ इस सूत्र की समाप्ति हो रही है। भगवतीसूत्र भी पूर्ण मुद्रित हो चुका है। ये दोनों पागम विराट्काय हैं और इनके मुद्रण के साथ एक बड़ा भार कम हो गया है। यह अतीव प्रसन्नता का विषय है। प्रज्ञापना के इस अन्तिम खण्ड में विस्तृत प्रस्तावना और परिशिष्ट दिए जा रहे हैं जो समग्र ग्रन्थस्पर्शी हैं। पाठकों के लिए ये विशेष उपयोगी सिद्ध होंगे। पहले के दो खण्डों की भांति इसके सम्पादक और अनुवादक जैनभूषण विद्वद्वर श्री ज्ञानमुनिजी म. हैं और प्रस्तावनालेखक साहित्यवाचस्पति पंडितप्रवर श्रीदेवेन्द्रमुनिजी म. हैं / प्रस्तावना विस्तृत है। उसमें समग्र ग्रन्थ का निचोड़ पा गया है। इन मुनिराजों के अमूल्य सहयोग के लिए समिति अत्यन्त आभारी है। अनुयोगद्वार प्रेस में देने की तैयारी में है। आशा है वह भी यथासम्भव शीध्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकेगा। ग्रन्थमाला के प्रकाशन में जिन-जिन विद्वानों और अर्थसहायकों का सहयोग प्राप्त हुया है, जिनके बहुमूल्य सहयोग की बदौलत आगमप्रकाशन-कार्य अग्रसर हो रहा है, उन सबके प्रति कृतज्ञता-प्रकाशन करना स्वाभाविक है / अन्त में निवेदन है कि प्रागमप्रेमो और स्वाध्यायरसिक महानुभाव इनके अधिकाधिक प्रचार-प्रसार में सहयोग प्रदान करें, जिससे जिनशासन की महिमा की वद्धि हो और हमारा प्रयास अधिक सफल हो। रतनचंद मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष जी. सायरमल चोरडिया चांदमल विनायकिया प्रधानमंत्री श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान) मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org