Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ स्पर्श होता तो हमें स्पर्श की प्रतीति होनी चाहिए, हम शब्द सुनते हैं किन्तु शब्द स्पर्श नहीं होता, ऐसी स्थिति में शब्द को स्पर्शवान कैसे माना जाय ? उत्तर में निवेदन है कि जिस वस्तु का हमें अनुभव हो उसका प्रभाव हो, ऐसा नियम नहीं बनाया जा सकता। ऐसी अनेक वस्तुएं हैं जिनका हमें अनुभव नहीं होता तथापि अनुमानादि प्रमाणों से उनका अस्तित्व स्वीकार किया जाता है। उदाहरणार्थ परमाणु प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता तथापि उसका अस्तित्व है। द्वितीय जिज्ञासा यह हो सकती है कि शब्द में स्पर्श है तो उसकी प्रतीति क्यों नहीं होती? इसका समाधान यह है शब्द में स्पर्श तो है पर वह अव्यक्त है। जैसे सुगन्धित पदार्थ से गन्ध की अनुभूति तो होती है पर उसमें स्पर्श का अनुभव नहीं होता चूंकि वह अव्यक्त है। इसी तरह शब्द का स्पर्श भी अव्यक्त है / पुनः जिज्ञासा हो सकती है कि शब्द में स्पर्श होने का निश्चय कैसे करें? समाधान में कहा जा सकता है जब अनुकल पवन चलता हो तब दूर तक भी ध्वनि सुनाई देती है। प्रतिकुल पवन के चलने पर सन्निकट में भी रहे हुए शब्द स्पष्ट रूप से सुनाई नहीं देते। इससे स्पष्ट है कि अनुकल पवन शब्द के संचार में सहायक होता है तो प्रतिकूल पवन प्रतिरोध करता है / यदि शब्द स्पर्शहीन होता तो उस पर पवन का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता / इसलिए शब्द रूपी है, स्पर्श वाला है और स्पर्श वाला होने से वह पौदगलिक है / दूसरा तर्क था कि शब्द दीवाल को उल्लंघ कर बाहर आ जाता है इसलिए पुद्गल नहीं है। उत्तर यह है कि द्वार और खिड़कियों में लघु छिद्र होते हैं जिसके कारण उन छिद्रों में से शब्द बाहर आता है। यदि बिल्कुल ही छिद्र न हों तो शब्द बाहर नहीं पाता / द्वार खुला है तो स्पष्ट सुनाई देता है और द्वार बन्द होने पर अस्पष्ट / इसलिए शब्द गन्ध की तरह ही स्थूल है और स्थूल होने के कारण वह पौद्गलिक है। तीसरी युक्ति उत्पत्ति होने के पहले और नष्ट होने के बाद पुद्गल दिखाई न देने के तर्क का उत्तर यह हैजैसे विद्यत् उत्पन्न होने के पहले दिखलाई नहीं देती और नष्ट होने के बाद भी उसका उत्तरकालीन रूप दिखलाई नहीं देता फिर भी विद्युत पौलिक ही है तो शब्द को पौद्गलिक मानने में क्या बाधा है ! चतुर्थ युक्ति यह दी गई है कि शब्द यदि पुद्गल होता तो वह अवश्य ही अन्य पुद्गलों को प्रेरित करता। इसके उत्तर में हम यह कहना चाहेंगे कि सूक्ष्म रज, धूम, आदि ऐसे अनेक पदार्थ हैं जो पौद्गलिक होने पर भी दूसरों को प्रेरणा नहीं करते / इससे उनके पुदगल होने में कोई बाधा उपस्थित नहीं होती, वैसी ही स्थिति शब्द की भी है। पांचवीं युक्ति थी---शब्द आकाश का गुण है परन्तु शब्द वास्तव में प्राकाश का गुण नहीं है किन्तु पुद्गल द्रव्य की पर्याय है। यदि शब्द आकाश का गुण होता तो वह प्रत्यक्ष नहीं हो सकता था / चूंकि आकाश प्रत्यक्ष नहीं है तो उसका गुण कैसे प्रत्यक्ष हो सकता है ? शब्द श्रोत्र इन्द्रिय के द्वारा प्रत्यक्ष होता है, इसलिए वह आकाश का गुण नहीं है। जो पदार्थ इन्द्रिय का विषय होता है वह पौद्गलिक होता है, जैसे घट, पट, आदि पदार्थ। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि शब्द पुद्गल है। इस पुद्गलरूप शब्द में एक स्वाभाविक शक्ति है जिसके कारण पदार्थों का बोध होता है / प्रत्येक शब्द में संसार के सभी पदार्थों का बोध कराने की शक्ति रही हई / घट शब्द घड़े का बोधक है किन्तु वह पट आदि का भी बोधक हो सकता है / पर मानव ने विभिन्न संकेतों की कल्पना करके उसकी विराट् वाचकशक्ति केन्द्रित कर दी है। अतः जिस देश और जिस काल में जिस पदार्थ के लिए जो शब्द नियत है वह उसी का बोध कराता है। उदाहरण के रूप में 'गौ' शब्द को लें, 'गौ' का अर्थ यदि संसार के सभी पदार्थों को मान लिया जाय तो व्यक्ति उससे कोई भी पदार्थ समझ लेगा। इस गड़बड़ी से बचने के लिए शब्द की व्यापक [43 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org