________________ प्रासयं मलयगिरि की व्याख्या के पश्चात अन्य छ प्राचार्यों ने भी व्याख्याएँ लिखी हैं. पर वे व्याख्या मम पर नहीं है और न इतनी विस्तृत ही हैं। मुनि चन्द्रसूरि ने प्रज्ञापना के वनस्पति के विषय को लेकर वनस्पतिसप्ततिका ग्रन्थ लिखा है जिसमें 71 गाथाएं हैं / इस पर एक अज्ञात लेखक की एक प्रवरि भी है / यह अप्रकाशित है और इसकी प्रति लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर ग्रन्थगाार में है। प्रज्ञापनाबीजक -- यह हर्षकुलगणी की रचना है, ऐमा विज्ञों का मत है। क्योंकि ग्रन्थ के प्रारम्भ में और अन्त में कहीं पर भी कोई सूचना नहीं है। इसमें प्रज्ञापना के छत्तीस पदों की विषयसूची संस्कृत भाषा में दी गई है। यह प्रति भी अप्रकाशित है पोर लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर प्रन्यागार के संग्रह में है पद्मसुन्दर कृत प्रवचूरि-यह भी एक अप्रकाशित रचना है, जिसका संकेत प्राचार्य मलयगिरि ने अपनी टीका में किया है। इसकी प्रति भी उपर्युक्त ग्रन्थागार में उपलब्ध है। धनविमलकृत बालावबोध भी अप्रकाशित रचना है। सर्वप्रथम भाषानुवाद इसमें हना है जिसे टवा कहते हैं। इस टबे की रचना संवत् 1767 से पहले की है। श्री जीवविजय कृत दूसरा टबा यानी बालावबोध भी प्राप्त होता है। यह दबा 1764 संवत् में रचित है। परमानन्द कृत स्तवक अर्थात बालावबोध प्राप्त है, जो संवत 1876 की रचना है। यह टबा रायधनपतसिंह बहादुर की प्रज्ञापना की प्रवृत्ति में प्रकाशित है। श्री नानकचंदकृत संस्कृतछाया भी प्राप्त है, जो रायधनपतसिंह बहादुर ने प्रकाशित की है (प्रज्ञापना के साथ)। पण्डित भगवानदास हरकचन्द ने प्रज्ञापनासूत्र का अनुवाद भी तैयार किया था, जो विक्रम संवत 1991 में प्रकाशित हुया / प्राचार्य अमोलकऋषि जी महाराज ने भी हिन्दी अनुवाद सहित प्रज्ञापना का एक संस्करण प्रकाशित किया था। इस प्रकार समय-समय पर प्रज्ञापना पर विविध व्याख्या साहित्य लिखा गया है। सर्वप्रथम सन् 1884 में मलयगिरिविहित विवरण, रामचन्द्र कृत संस्कृतछाया व परमानन्दर्षिकृत स्तवक के साथ प्रज्ञापना का धनपतसिंह ने बनारस से संस्करण प्रकाशित किया। उसके पश्चात् सन् 1918-1919 में प्रागमोदय समिति बम्बई ने मलयगिरि टोका के साथ प्रज्ञापना का संस्करण प्रकाशित किया। विक्रम संवत 1991 में भगवानदास हर्षचन्द्र जैन सोसायटी अहमदाबाद से मलयगिरि टीका के अनुवाद के साथ प्रज्ञापना का संस्करण निकला / सन् 1947-1949 में ऋषभदेवजी केसरीमलजी श्वेताम्बर संस्था रतलाम, जैन पुस्तक प्रचार संस्था, सूरत से हरिभद्रविहित प्रदेशव्याख्या सहित प्रज्ञापना का संस्करण निकला। स महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से पण्णवणासुत्तं मूल पाठ और विस्तृत प्रस्तावना के साथ, पुण्यविजयजी महाराज द्वारा सम्पादित एक शानदार प्रकाशन प्रकाशित हुआ है। विक्रम सम्वत् 1975 में श्री अमोलकऋषिजी महाराज कृत हिन्दी अनुवाद सहित हैदराबाद से एक प्रकाशन निकला है / वि. सम्वत् 2011 में सूत्रागमसमिति गुडगांव छावनी से श्री पुप्फभिक्खु द्वारा सम्पादित प्रज्ञापना का मूल पाठ प्रकाशित हुआ है। इस तरह समय समय पर अाज तक प्रज्ञापना के विविध संस्करण निकले हैं। प्रस्तुत संस्करण प्रज्ञापना के अनेक संस्करण प्रकाशित होने पर भी एक ऐसे संस्करण की प्रावश्यकता थी जिसमें शुद्ध मूल पाठ हो, अर्थ हो और मुख्य स्थलों पर विवेचन भी हो, जिससे विषय सहज रूप से समझा जा सके। इसी दृष्टि से प्रस्तुत मागम का प्रकाशन हो रहा है। श्रमणसंघ के युवाचार्य महामहिम मधकर मुनिजी महाराज ने आगमों के अभिनव संस्करण निकालने की योजना बनाई / यह योजना युवाचार्यश्री की दूरदर्शिता, दढ़संकल्प, शक्ति और प्रागमसाहित्य के प्रति अगाध भक्ति का पावन प्रतीक है। युवाचार्यश्री के प्रबल पुरुषार्थ के फलस्वरूप ही स्वल्पकाल में अनेक प्रामम [70 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org