________________ छब्बीसवां कर्मवेद-बंधपद ज्ञानावरणीयादि कर्मों के वेदन के समय अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध का निरूपण वेदनीय कर्म के वेदन के समय अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध की प्ररूपणा आयुष्यादि कर्मवेदन के समय कर्मप्रकृतियों के बन्ध की प्ररूपणा सत्ताईसवां कर्मवेद-वेदपद ज्ञानावरणीयादि कर्मों के वेदन के साथ अन्य कर्मप्रकृतियों के वेदन का निरूपण अट्ठाईसवां प्राहारपद प्राथमिक 0 0 0 0 0 122 प्रथम उद्देशक प्रथम उद्देशक में उल्लिखित ग्यारह द्वार चौवीस दण्डकों में प्रथम सचित्ताहार द्वार नैरथिकों में आहारार्थी आदि द्वितीय से अष्टम द्वार पर्यन्त भवनपतियों के सम्बन्ध में आहारार्थी आदि सात द्वार एकेन्द्रियों में आहारार्थी आदि सात द्वार विकलेन्द्रियों में प्राहारार्थी प्रादि सात द्वार 112 पंचेन्द्रिय तिर्यचों, मनुष्यों, ज्योतिषकों एवं वाणध्यन्तरों में प्राहारार्थी आदि सात द्वार 115 वैमानिक देवों में प्राहारादि सात द्वारों को प्ररूपणा 116 एकेन्द्रियशरीरादिद्वार लोमाहारद्वार 123 मनोभक्षीद्वार 124 द्वितीय उद्देशक द्वितीय उद्देशक के द्वारों की संग्रहणी गाथा 126 प्रथम-प्राहारद्वार द्वितीय-भव्यद्वार तृतीय-संजीद्वार चतुर्थ-लेश्याद्वार 132 पंचम-दृष्टिद्वार 134 छठा-संयतद्वार सातवां-कषायद्वार 138 पाठवां-ज्ञानद्वार 139 126 128 136 [74 ] For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org