________________ याचकशक्ति को किसी एक पदार्थ तक सीमित करना आवश्यक है, जिससे वह एक पदार्थ का बोध दे सके / नियत अर्थ का ही परिज्ञान करा सके / भाषा शब्दवर्गणा के पुदगलों से निर्मित होती है। शब्दवर्गणा के परमाणु समस्त लोकाकाश में व्याप्त हैं। जब वक्ता बोलना चाहता है तो उन पुद्गलों को ग्रहण करता है, बे पुद्गल शब्दरूप में परिणत हो जाते हैं और बोलते हुए एक समय में लोकान्त तक पहुँच जाते हैं। उनकी गति का वेग तीव्रतर होता है। प्राकाश द्रव्य के प्रदेशों की श्रेणियाँ हैं। वे श्रेणियाँ पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर, नीचे इस प्रकार छहों दिशाओं में विद्यमान हैं / जब वक्ता भाषा का प्रयोग करता है तो शब्द उन श्रेणियों से प्रसस्ति होता है। चार समय जितने सूक्ष्म काल में शब्द सम्पूर्ण लोकाकाश में फैल जाता है। यदि श्रोता भाषा की समश्रेणी में अवस्थित होता है तो वक्ता द्वारा जो भाषा बोली जाती है या भेरी आदि वाद्य का जो शब्द होता है उसे वह मिश्र रूप में सुनता है। यदि श्रोता विश्रेणी में स्थित है तो वासित शब्द सुनता है। __ श्रोता वक्ता द्वारा बोले हुए शब्द ही नहीं सुनता परन्तु बोले हुए शब्दद्रव्य तथा उन शब्दद्रव्यों से वासित हुए बीच के शब्दद्रव्य मिककर मिश्रशब्द होते हैं। उन्हीं मिश्रशब्दद्रव्यों को समश्रेणी स्थित श्रोता श्रवण करता है। विश्रेणी स्थित श्रोता मिश्रशब्द को भी श्रवण नहीं करता। वह केवल उच्चारित मूल शब्दों द्वारा वासित शब्दों को ही श्रवण करता है। बासित शब्द का अर्थ है वक्ता द्वारा शब्द रूप से त्यागे हुए द्रव्यों से अथवा भेरी प्रादि की ध्वनि से, मध्य में स्थित शब्दवर्गणा के पुदगल शब्द रूप में परिणत हो जाते हैं। शब्द श्रेणी के अनुसार ही फैलता है, वह विश्रेणी में नहीं जाता। शब्दद्रव्य इतना सूक्ष्म है कि दीवाल प्रभृति का प्रतिघात भी उसे विश्रेणी में नहीं ले जा सकता। यहाँ सहज ही यह जिज्ञासा हो सकती है कि शब्द एक समय में श्रेणी के अनुसार लोकान्त तक पहुँच जाता है। द्वितीय समय में विदिशा में भी जाता है और चार समय में समस्त लोक में फैल जाता है। ऐसी स्थिति में जब श्रोता विदिशा में होता है तो मिश्रशब्द श्रवण क्यों नहीं करता ? उत्तर यह है कि लोकान्त में भाषा को पचने में केवल एक समय लगता है और दूसरे समय में भाषा, भाषा नहीं रहती। क्योंकि कहा गया है, जिस समय में वह भाषा बोली जाती हो उसी समय में वह भाषा कहलाती है, दूसरे समय में भाषा अभाषा हो जाती है। 30 / इसलिए बिदिशा में जो शब्द सुनाई पड़ता है वह दो, तीन, चार आदि समयवर्ती हो जाता है जिससे वह श्राव्य शक्ति से शुन्य हो जाता है। वह मुल शब्द अन्य शब्दवर्गणा के पुद्गलों को भाषारूप में परिणत कर देता है। इसलिए वह वासित शब्द है और बासित शब्द विदिशा में सुनाई नहीं देते। उदाहरण के रूप में तालाब में जहाँ पर पत्थर गिरता है उसके चारों ओर एक लहर व्याप्त हो जाती है। वह लहर अन्य लहरों को उत्पन्न करती हुई जलाशय के अन्त तक पहुंच जाती है। उसी तरह जब वक्ता द्वारा प्रयुक्त भाषाद्रव्य आगे बढ़ता हुआ आकाश में अवस्थित अन्यान्य भाषा योग्य द्रव्यों को भाषा रूप में परिणत करता हुआ लोक के अन्त तक जाता है। लोक के अन्त तक पहुँच कर उसमें जो श्रव्यशक्ति है वह समाप्त तो जाती है। उससे अन्यान्य भाषावर्गणा के पुद्गलों में शब्दरूप परिणति समुत्पन्न होती है और वे शब्द मूल और बीच के शब्दों द्वारा सम्प्रेरित होकर गतिमान होते हैं। इस तरह चार समय में सम्पूर्ण लोकाकाश उन शब्दों से व्याप्त हो जाता है। काययोग के द्वारा जीव भाषावर्गणा के द्रव्यों को ग्रहण करता है और वचनयोग के द्वारा उसका परित्याग करता है।'' ग्रहण करने का और त्याग करने का क्रम चलता रहता है। कभी कभी जीव प्रतिपल प्रतिक्षण 130. भाष्यमाणव भाषा, भाषासमयानन्तरं भाषाऽभाषा / 131. (क) प्रावश्यकनियुक्ति, गाथा 7 (ख) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 353 [ 44 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org