________________ काल की दृष्टि से दर्शन और ज्ञान का क्या सम्बन्ध है? इस प्रश्न पर भी चिन्तन करना प्रावश्यक है। छद्मस्थों के लिए सभी प्राचार्यों का एक मत है कि छद्मस्थों को दर्शन और ज्ञान क्रमशः होता है, युगपद् नहीं / केवली में दर्शन और ज्ञान का उपयोग किस प्रकार होता है, इस सम्बन्ध में प्राचार्यों के तीन मत हैं। प्रथम मत के अनुसार ज्ञान और दर्शन क्रमशः होते हैं। द्वितीय मान्यता के अनुसार दर्शन और ज्ञान युगपद होते हैं। तृतीय मान्यतानुसार ज्ञान और दर्शन में प्रभेद है अर्थात दोनों एक हैं। आवश्यकनियुक्ति,६४ विशेषावश्यकभाष्य'६५ आदि में भी कहा गया है कि केवली के भी दो उपयोग एक साथ नहीं हो सकते / श्वेताम्बर परम्परा के आगम इस सम्बन्ध में एक मत हैं, वे केवली के दर्शन और ज्ञान को युगपत् नहीं मानते।" दिगम्बर परम्परा के अनुसार केवलदर्शन और केवलज्ञान युगपत् होते हैं। प्राचार्य उमास्वाति का भी यही अभिमत रहा है। मति-श्रुत आदि का उपयोग क्रम से होता है, युगपत नहीं। केवली में दर्शन और ज्ञानात्मक उपयोग प्रत्येक क्षण में युगपत् होता है। नियमसार में आचार्य कुन्दकुन्द ने स्पष्ट लिखा है कि जैसे सूर्य में प्रकाश और प्रातप एक साथ रहता है उसी प्रकार केवली में दर्शन और ज्ञान एक साथ रहते हैं। तीसरी परम्परा चतुर्थ शताब्दी के महान दार्शनिक प्राचार्य सिद्धसेन दिवाकर की है। उन्होंने सन्मतितर्कप्रकरण ग्रन्थ में लिखा है-मन:पर्याय तक तो ज्ञान और दर्शन का भेद सिद्ध कर सकते हैं किन्तु केवलज्ञानकेबलदर्शन में भेद सिद्ध करना संभव नहीं। 100 दर्शनावरण और ज्ञानावरण का क्षय युगपत होता है। उस क्षय से होने वाले उपयोग में 'यह प्रथम होता है, यह बाद में होता है' इस प्रकार का भेद किस प्रकार से किया जा सकता है?२०' कैवल्य की प्राप्ति जिस समय होती है उस समय सर्वप्रथम मोहनीयकर्म का क्षय होता है। उसके पश्चात् ज्ञानावरण और दर्शनावरण तथा अन्तराय का युगपत् क्षय होता है। जब दर्शनावरण और ज्ञानावरण दोनों के क्षय में काल का भेद नहीं है, तब यह किस आधार पर कहा जा सकता है कि प्रथम केवलदर्शन होता है, बाद में केवलज्ञान / इस समस्या के समाधान के लिए कोई यह मानें कि दोनों का युगपत् सदभाव है तो यह भी उचित नहीं, क्योंकि एक साथ दो उपयोग नहीं हो सकते। इस समस्या का सबसे सरल और तर्कसंगत समाधान यह है कि केवली अवस्था में दर्शन और ज्ञान में भेद नहीं होता। दर्शन और ज्ञान को पृथक्-पृथक् मानने से एक समस्या और उत्पन्न होती है कि यदि केवली एक ही क्षण में सभी कुछ जान लेता है तो उसे सदा के लिए सब कुछ जानते रहना चाहिए। यदि उसका ज्ञान सदा पूर्ण नहीं है तो वह सर्वज्ञ कैसा? 202 194. पावश्यक नियुक्ति गाथा 977-979 195. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 3088-3135 196. भगवती सूत्र 18/8 तथा भगवती, शतक 14, उद्देशक 10 197. गोम्मटसार, जीवकाण्ड 730 और द्रव्यसंग्रह 44 198, तत्त्वार्थसूत्र भाष्य 1/31 199. नियमसार, गाथा 159 200. सन्मति. प्रकरण 2/3 201. सन्मति. प्रकरण 2/9 202. सन्मति. प्रकरण 2/10 [60 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org