Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ रचना शैली प्रज्ञापना की रचना प्रश्नोत्तर के रूप में हुई है। प्रथम सूत्र से लेकर इक्यासीवें सूत्र तक प्रश्नकर्ता कौन है और उत्तरदाता कौन है ? इस सम्बन्ध में कोई भी सूचन नहीं है। केवल प्रश्न और उत्तर हैं। इसके पश्चात् बयासीवें सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर और गणधर गौतम का संवाद है / तेयासीवें सूत्र से लेकर बरानवे (92) सूत्र तक सामान्य प्रश्नोत्तर हैं / तेरानवे सूत्र में गणधर गौतम और महावीर के प्रश्नोत्तर, उसके पश्चात् चौरानवें सूत्र से लेकर एक सौ सैंतालीसवें सूत्र तक सामान्य प्रश्नोत्तर हैं। उसके पश्चात् एक सौ अड़तालीस से लेकर दो सौ ग्यारह तक अर्थात् सम्पूर्ण द्वितीय पद में; तृतीय पद के सूत्र दो सौ पच्चीस से दो सौ पचहत्तर तक और सूत्र तीन सौ पच्चीस, तीन सौ तीस से तीन सौ तेतीस तक बचतुर्थ पद से लेकर शेष सभी पदों के सूत्रों में गौतम गणधर और भगवान महावीर के प्रश्नोत्तर दिये हैं / केवल उनके प्रारम्भ, मध्य और अन्त में आने वाली गाथा और एक हजार छियासी में वे प्रश्नोत्तर नहीं हैं। जिस प्रकार प्रारम्भ में सम्पूर्ण ग्रन्थ की अधिकार-गाथाएँ पाई हैं, उसी प्रकार कितने ही पदों के प्रारम्भ में भी विषय निर्देशक गाथाएँ हैं / उदाहरण के रूप में-तीसरे, अठारहवें बीसवें और तेईसवें पदों के प्रारम्भ और उपसंहार में गाथाएँ हैं / इसी प्रकार दसवें पद के अन्त में, ग्रन्थ के मध्य में और जहाँ आवश्यकता हुई, वहाँ भी गाथाएँ दी गई हैं। सम्पूर्ण पागम का श्लोकप्रमाण सात हजार आठ सौ सतासी है। इसमें प्रक्षिप्त गाथाओं को छोड़कर कुल दो सौ बत्तीस गाथाएँ हैं और शेष गद्य भाग है / इस पागम में जो संग्रहणी गाथाएँ हैं, उनके रचयिता कौन है ? यह कहना कठिन है। प्रज्ञापना के छत्तीस पदों में से प्रथम पद में जीव के दो भेदसंसारी और सिद्ध बताये हैं। उसके बाद इन्द्रियों के क्रम के अनुसार एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक में सभी संसारी जीवों का समावेश करके निरूपण किया है। यहाँ जीव के भेदों का नियामक तत्त्व इन्द्रियों की क्रमशः वृद्धि बतलाया है। दूसरे पद में जीवों की स्थानभेद से विचारणा की गई है। इसका क्रम भी प्रथम पद की भांति इन्द्रियप्रधान ही है। जैसे-वहाँ एकेन्द्रिय कहा वैसे ही यहाँ पृथ्वीकाय, अप्काय प्रादि कायों को लेकर भेदों का निरूपण किया गया है। तृतीय पद से लेकर शेष पदों में जीवों का विभाजन गति, इन्द्रिय, काय, योग, कषाय, लेण्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परित्त, पर्याप्त, सूक्ष्म, संजी, भव, अस्तिकाय, चरम, जीव, क्षेत्र, बंध, इन सभी दृष्टियों से किया गया है। उनके अल्पबहत्व का भी विचार किया गया है। अर्थात् प्रज्ञापना में तृतीय पद के पश्चात् के पदों में कुछ अपवादों 40 को छोड़कर सर्वत्र नारक से लेकर चौवीस दण्डकों में विभाजित जीवों की विचारणा की गई है। विषय-विभाग प्राचार्य मलयगिरि ने प्रज्ञापना सूत्र में पाई हई दूसरी गाथा की व्याख्या करते हए विषय-विभाग का सम्बन्ध जीव, अजीव प्रादि सात तत्त्वों के निरूपण के साथ इस प्रकार संयोजित किया है 1-2. जीव-अजीव पद-१, 3, 5, 10 और 13 =5 पद 3 प्रास्रव- पद -16, 22 =2 पद . 39. पण्णवणासुत्तं, द्वितीय भाग (प्रकाशक-श्री महावीर जैन विद्यालय) प्रस्तावना, पुष्ठ 10-11. 40. इस अपवाद के लिए देखिए, पद-१३, 18, 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org