________________ पट्खण्डागम५७ 1. गति 2. इन्द्रिय 3. काय 4. योग 5. वेद 6. कषाय 10. लेश्या 12. सम्यक्त्व 7. ज्ञान 9. दर्शन 8. संयम प्रज्ञापना 1. दिशा 2. गति 3. इन्द्रिय 4. काय 5. योग 6. वेद 7. कषाय 8. लेश्या 9. सम्यक्त्व 10. ज्ञान 11. दर्शन 12. संयम 13. उपयोग 14. आहार 15. भाषक 16. परित 17. पर्याप्त 18. सूक्ष्म 19. संजी 20. भव 21. अस्तिकाय 22. चरिम 23. जीव 24. क्षेत्र 25. बंध 26. पुद्गल 14. याहारक 13. संज्ञो 11. भव्य जैसे प्रज्ञापनासूत्र की बहुवक्तव्यता नामक तृतीय पद में गति, प्रभृति मार्गणास्थानों की दृष्टि से छब्बीस द्वारों के अल्पबहत्व पर चिन्तन करने के पश्चात् प्रस्तुत प्रकरण के अन्त में "अह भंते सव्वजीवप्पबहुं महा 52 दिसि गति इंदिय काए जोगे वेदे कसाया लेस्सा य / सम्मत्त जाण दंसण संजम उवयोग पाहारे // भासम परित्त पज्जत्त सुहम सण्णी भवत्थिए चरिमे / जीवे य खेत्त बन्धे पोग्गल महदंडए चेव // -पन्नवणा. 3, बहुवत्तवपयं सूत्र 212. गा. 180, 151 . 53. षटखण्डागम, पुस्तक 7, पृ. 520 [19] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org