Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ में विभक्त होने से 'षट्खण्डागम' के रूप में विश्रुत है / ऐतिहासिक प्रमाणों से यह सिद्ध है कि पुष्पदन्त पौर भूतबलि से पूर्व श्यामाचार्य हुए थे / अतः प्रज्ञापना षट्खण्डागम से बहुत पहले की रचना है। दोनों ही प्रागमों का मूल स्रोत दृष्टिवाद है। 46 दोनों ही पागमों का विषय जीव और कर्म का सैद्धान्तिक दृष्टि से विश्लेषण करना है। दोनों में अल्पबहुत्व का जो वर्णन है, उसमें अत्यधिक समानता है, जिसे महादण्डक कहा गया है। दोनों में गति-प्रागति प्रकरण में तीर्थंकर, बलदेव एवं वासुदेव के पदों की प्राप्ति के उल्लेख की समानता वस्तुतः प्रेक्षणीय है। दोनों में अवगाहना, अन्तर आदि अनेक विषयों का समान रूप से प्रतिपादन किया गया है। प्रज्ञापना में छत्तीस पद हैं, उनमें से 23, २७वें, ३५वें पद में क्रमशः प्रकृतिपद, कर्मपद, कर्मबंधवेदपद, कर्मवेदबंधपद, कर्मवेदवेदकपद और बेदनापद ये छह नाम हैं। षटखण्डागम के टीकाकार वीरसेन ने षट्खण्डागम के जीवस्थान, क्षुद्रकबंध, बंधस्वामित्व, वेदना, वर्गणा और महाबंध ये छह नाम दिये हैं। प्रज्ञापना के उपर्युक्त पदों में जिन तथ्यों की चर्चाएं की गई हैं, उन्हीं तथ्यों की चर्चाएँ षट्खण्डागम में भी की गई हैं। दोनों ही आगमों में गति प्रादि मार्गणास्थानों की दष्टि से जीवों के अल्पबहत्व पर चिन्तन किया गया है। प्रज्ञापना में अल्पबहत्व की मार्गणाओं के छब्बीस द्वार हैं जिनमें जीव और अजीव इन दोनों पर विचार किया गया है / षट्खण्डागम में चौदह गुणस्थानों से सम्बन्धित गति आदि मार्गणाओं को दृष्टि में रखते हुए जीवों के अल्पबहुत्व पर विचार किया गया है। प्रज्ञापना में अल्पबहुत्व को मार्गणाओं के छब्बीस द्वार हैं तो षट्खण्डागम में चौदह हैं। किन्तु दोनों के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि षटखण्डागम में वर्णित चौदह मार्गणा द्वार प्रज्ञापना में वर्णित छब्बीस द्वारों में चौदह के साथ पूर्ण रूप से मिलते हैं। जैसा कि निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट है:-- 49. (क) अज्झयणमिणचित्तं सुयरयणं दिट्ठीवायणीसंदं / जह वणियं भगवया, अहमवि तह वण इस्सामि / / -प्रज्ञापनासूत्र, पृष्ठ 1, गा. 3. (ख) अमायणीयपूर्वस्थित-पंचमवस्तुगतचतुर्थमहाकर्मप्राभृतकज्ञः सूरिधरसेननामाऽभूत् // 104 // कर्मप्रकृतिप्रामृतमुपसंहार्यव षड्भिरिह खण्डः // 134 // -श्रुतावतार-इन्द्रनन्दी कृत (ग) भूतबलि-भयवदा जिणवालिदपासे दिविसदिसुत्तेण अप्पाउनोत्ति अवगयजिणवालिदेण महाकम्मपयडिपाहुडस्स वोच्छेदो होहदि त्ति समुप्पण्णबुद्धिणा पुणो दन्वपमाणाणुगममादि काऊण गंथरयणा कदा / -षट्खण्डागम, जीवट्ठाण, भाग 1, पृष्ठ 71 50. अह भंते ! सब्बजीवप्पबहं महादंडयं वण्ण इस्सामि सम्वत्थोवा गब्भवक्कतिया मणुस्सा....सजोगी विसेसाहिया 96, संसारत्था विसेसाहिया 98, सब्वजीवा विसेसाहिया 98 / -प्रज्ञापनासूत्र-३३४ तुलना करें___'एत्तो सन्दजीवेसु महादंडो कादब्वो भवदि सम्वत्थोवा मणुस्सपज्जत्ता गम्भोववस्कंतिया.... णिगोदजीवा विसेसाहिया। -षट्खण्डागम, पुस्तक 7 प्रज्ञापनासूत्र, सू. 1444 से 65. तुलना करेंषट्खण्डागम, पुस्तक 6. सू. 116-220 [18] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org