Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ बाईसवाँ क्रियापद] [519 विवेचन-क्रियाओं का अल्पबहुत्व : क्यों और कैसे ? —सबसे कम मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रियाएँ हैं, क्योंकि वे मिथ्यादृष्टियों के ही होती हैं। उनसे अप्रत्याख्यानक्रिया विशेषाधिक इसलिए है कि वे अविरत सम्यग्दृष्टियों एवं मिथ्यादृष्टियों के होती हैं, उनसे पारिग्रहिकी क्रियाएँ विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे देशविरतों तथा उनसे पूर्व श्रेणी के प्राणियों के भी होती हैं, प्रारम्भिकी क्रियाएँ उनसे विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रमत्तसंयतों तथा इनसे पूर्व के गुणस्थानों में होती हैं। उनसे भी मायाप्रत्यया विशेषाधिक हैं, क्योंकि अन्य सब संसारी जीवों के उपरान्त अप्रमत्तसंयतों में भी पाई जाती हैं। / / प्रज्ञापना भगवती का बाईसवाँ क्रियापद सम्पूर्ण / 1. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र 452 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org