Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 508] [ज्ञापनासूत्रे 1632. एवं पारिग्गहिया वि तिहि उवरिल्लाहि समं चारेयध्वा / [1632] इसी प्रकार (प्रारम्भिकी क्रिया के साथ जैसे पारिग्रहिको, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानी क्रिया के सहभाव का प्रश्नोत्तर किया गया है, उसी प्रकार) आगे की तीन क्रियाओं (मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानी एवं मिथ्यादर्शनप्रत्यया) के साथ सहभाव-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर समझ लेना चाहिए / 1633. जस्स मायावत्तिया किरिया कज्जति तस्स उवरिल्लाओ दो वि सिय कन्जंति सिय णो कज्जति, जस्स उवरिल्लायो दो कज्जति तस्स मायावत्तिया णियमा कज्जति / [1633 जिसके मायाप्रत्यया क्रिया होती है, उसके आगे को दो क्रियाएँ (अप्रत्याख्यानिकी और मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया) कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती, (किन्तु) जिसके आगे को दो क्रियाएँ (अप्रत्याख्यानिकी एवं मिथ्यादर्शनप्रत्यया) होती है, उसके मायाप्रत्यया क्रिया नियम से होती है। 1634. जस्स अपच्चक्खाणकिरिया कज्जति तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिर कज्जइ सिय णो कज्जइ, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जति तस्स अपच्चक्खाणकिरिया णियमा कज्जति। [1634] जिसको अप्रत्याख्यान क्रिया होती है, उसको मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती, (किन्तु) जिसको मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है, उसके अप्रत्याख्यान क्रिया नियम से होती है। 1635. [1] रइयस्स आइल्लियाओ चत्तारि परोपरं णियमा कज्जंति, जस्स एतामो चत्तारि कज्जंति तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया भइज्जति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जति तस्स एयाओ चत्तारि णियमा कज्जति / [1635-1] नारक को प्रारम्भ की चार क्रियाएँ (प्रारम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यान क्रिया) नियम से होती है। जिसके ये चार क्रियाएँ होती हैं, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया भजना (विकल्प) से होती है। (किन्तु) जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है, उसके ये चारों क्रियाएँ नियम से होती हैं / [2] एवं जाव थणियकुमारस्स / [1635-2] इसी प्रकार (नैरयिकों में क्रियाओं के परस्पर सहभाव के कथन के समान) (असुरकुमार से) यावत् स्तनितकुमार तक (दसों भवनपति देवों) में (क्रियाओं के सहभाव का कथन करना चाहिए।) [3] पुढविक्काइयस्स जाव चरिदियस्स पंच वि परोप्परं णियमा फज्जंति / [1635-3] पृथ्वीकायिक से लेकर यावत् चतुरिन्द्रिय तक (के जीवों के) पांचों ही (क्रियाएँ) परस्पर नियम से होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org