Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ बाईसवाँ क्रियापद] (1) अथवा अनेक सप्तविध-बन्धक अनेक एकविधवन्धक होते हैं और एक अष्टविधबन्धक होता है। (2) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, अनेक एकविधबन्धक और अनेक अष्टविधबन्धक होते हैं / (3) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविध-बन्धक होते हैं और एक षड्विध-बन्धक होता है / (4) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक तथा षड्विधबन्धक और होते हैं। (5) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं और एक प्रबन्धक होता है, (6) अथवा अनेक सप्तविधवन्धक, एकविधबन्धक और प्रबन्धक होते हैं। (1) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक अनेक एकविधबन्धक और एक अष्टविधबन्धक और एक षड्विधबन्धक होता है / (2) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक, तथा एक अष्टविधबन्धक और अनेक षड्विधबन्धक होते हैं / (3) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, और अष्टविधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्धक होता है / (4) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक एकविधबन्धक अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं / (1) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविध-बन्धक होते हैं। तथा एक अष्टविधबन्धक और एक प्रबन्धक होता है / (2) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं, तथा एक अष्टविधबन्धक एवं अनेक प्रबन्धक होते हैं / (3) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं और एक अबन्धक होता है / (4) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और अबन्धक होते हैं। (1) अथवा अनेक सप्तविध-बन्धक और एकविधबन्धक होते हैं, तथा एक षड् विधबन्धक एवं प्रबन्धक होता है / (2) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं, तथा एक षड्विधबन्धक एवं अनेक प्रबन्धक होते हैं / (3) अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं और एक प्रबन्धक होता है / (4) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, षड्विधबन्धक और प्रबन्धक होते हैं। (1) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक, षड्विधवन्धक और प्रबन्धक होता है / (2) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं, तथा एक अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होता है, एवं अनेक प्रबन्धक होते हैं / (3) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, और एकविधबन्धक होते हैं / तथा एक अष्टविधबन्धक, अनेक षड्विधबन्धक और एक अबन्धक होता है। (4) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं, तथा एक अष्टविधबन्धक होता है, और अनेक षड्विधबन्धक एवं प्रबन्धक होते हैं / (5) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं, तथा एक षड्विधबन्धक और प्रबन्धक होता है। (6) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं, तथा एक पड़ावधवन्धक एवं अनेक प्रबन्धक होते हैं / (7) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं, तथा एक प्रबन्धक होता है। (8) अथवा अनेक सप्त विधवन्धक, एकविधवन्धक, अष्ट विधबन्धक षड्विधबन्धक और अवन्धक होते हैं / ये कुल पाठ भंग हुए। सब मिलाकर कुल 27 भंग होते हैं। 1644. एवं मणूसाण वि एते चेव सत्तावीसं भंगा भाणियन्वा / [1644] इसी प्रकार (उपर्युक्त प्रकार से) (प्राणातिपातविरत) मनुष्यों के भी (कर्मप्रकृतिबन्ध-सम्बन्धी) यही 27 भंग कहने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org