________________ [प्रज्ञापनासूत्र [1651 प्र.] भगवन् ! प्राणातिपातविरत जीव के क्या पारिग्रहिकी क्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। 1652. पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! सिय कज्जइ सिय णो कज्जति / [1652 प्र.] भंते ! प्राणातिपातविरत जीव के मायाप्रत्यया क्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। 1653. पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स अप्पच्चक्खाणवत्तिया किरिया कज्जति ? गोयमा ! णो इण8 सम?। [1553 प्र.] भगवन् ! प्राणातिपातविरत जीव के क्या अप्रत्याख्यान-प्रत्यया क्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / 1654. मिच्छादसणवत्तियाए पुच्छा। गोयमा ! नो इण? सम?। [1654] [इसी प्रकार की पृच्छा मिथ्यादर्शन-प्रत्यया के सम्बन्ध में करनी चाहिए। [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / 1655. एवं पाणाइवायविरयस्स मणूसस्स वि / [1655] इसी प्रकार प्राणातिपातविरत मनुष्य का भी (आलापक कहना चाहिए / ) 1656. एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मणूसस्स य / [1656] इसी प्रकार मायामृषाविरत जीव और मनुष्य के सम्बन्ध में भी पूर्ववत् कहना चाहिए। 1657. मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! जीवस्स कि प्रारंभिया किरिया कज्जति जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जति ? गोयमा ! मिच्छादसणसल्लविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जति सिय नो कज्जति / एवं जाव अप्पच्चक्खाणकिरिया / मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो कज्जति / [1657 प्र. भगवन् ! मिथ्यादर्शन-शल्य से विरत जीव के क्या प्रारम्भिकी क्रिया होती है, यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत जीव के प्रारम्भिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। इसी प्रकार यावत् अप्रत्याख्यानक्रिया तक (कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती।) (किन्तु) मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया नहीं होती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org