Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ बाईसवाँ क्रियापद) [507 गोयमा ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तस्स पारिग्गहिया किरिया सिय कज्जति सिय णो कज्जइ, जस्स पुण पारिग्गहिया किरिया कज्जइ तस्स प्रारंभिया किरिया नियमा कज्जति / [1628 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के प्रारम्भिको क्रिया होती है क्या उसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है ? ; (तथा) जिसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है, क्या उसके प्रारम्भिकी क्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! जिस जीव के ारम्भिकी क्रिया होती है, उसके पारिग्रहिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती; जिसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है, उसके प्रारम्भिकी क्रिया नियम से होती है। 1629. जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ ? 0 पुच्छा। गोयमा ! जस्स णं जीवस्स प्रारंभिया किरिया कज्जइ तस्स मायावत्तिया किरिया णियमा कज्जइ, जस्स पुण मायावत्तिया किरिया कज्जइ तस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ / [1626 प्र.] भगवन् ! जिस जीव को प्रारम्भिकी क्रिया होती है, क्या उसको मायाप्रत्यया क्रिया होती है ? (तथा) जिसके मायाप्रत्यया क्रिया होती है क्या उसके प्रारम्भिकी क्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! जिस जीव के प्रारम्भिकी क्रिया होती है, उसके नियम से मायाप्रत्यया क्रिया होती है, (और) जिसको मायाप्रत्यया क्रिया होती है, उसके प्रारम्भिकी क्रिया कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती। 1630. जस्स ण भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ तस्स अप्पच्चक्खाणकिरिया कज्जइ? 0 पुच्छा। ___ गोयमा ! जस्स णं जीवस्स प्रारंभिया किरिया कज्जइ तस्स अप्पच्चक्खाणकिरिया सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ, जस्स पुण अप्पच्चक्खाणकिरिया कज्जति तस्स आरंभिया किरिया णियमा कज्जति / 61630 प्र.] भगवन् ! जिस जीव को प्रारम्भिकी क्रिया होती है, क्या उसको अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है, (तथा) जिसको अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है, क्या उसको प्रारम्भिको क्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! जिस जीव को प्रारम्भिकी क्रिया होती है, उसको अप्रत्याख्यानिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती, किन्तु जिस जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है, उसके प्रारम्भिकी क्रिया नियम से होती है / 1631. एवं मिच्छादसणवत्तियाए वि समं / [1631] इसी प्रकार (प्रारम्भिकी क्रिया के साथ अप्रत्याख्यानी क्रिया के सहभाव के कथन के समान प्रारम्भिकी क्रिया के साथ) मिथ्यादर्शनप्रत्यया (के सहभाव का) (कथन करना चाहिए।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org