Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ बाईसा क्रियापद] [497 [उ.] गौतम ! (वे) तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं, चार क्रियाओं वाले भी और पांच क्रियाओं वाले भी होते हैं ? 1603. [1] रइया णं भंते ! णेरइरहितो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि। [1603-1 प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक, (अनेक) नैरयिकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं और चार क्रियाओं वाले भी होते हैं / [2] एवं जाव वेमाणिएहितो। गवरं ओरालियसरीरेहितो जहा जोवेहितो (सु. 1602) / |1603.2] इसी प्रकार (उपर्युक्त अालापक के समान) (अनेक असुरकुमारों से ले कर) यावत् (अनेक) वैमानिकों की अपेक्षा से क्रियासम्बन्धो पालापक कहने चाहिए। विशेष यह है कि अनेक औदारिकशरीरधारी जीवों को अपेक्षा से, (क्रियासम्बन्धी प्रालापक) (सू. 1602 में कथित अनेक) जीवों की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी पालापक) के समान (कहने चाहिए / ) 1604. [1] असुरकुमारे णं भंते ! जीवातो कतिकिरिए ? गोयमा ! जहेव रइएणं चत्तारि दंडगा (सु. 1596-99) तहेव असुरकुमारेण वि चत्तारि दंडगा भाणियन्वा / एवं उवउज्जिऊण भावेयन्वं ति-जीवे मणूसे य अकिरिए वुच्चति, सेसा अकिरिया ण वुच्चंति, सम्वे जीवा पोरालियसरीरेहितो पंचकिरिया, णेरइय-देवेहितो य पंचकिरिया ण वुच्चंति / [1604-1 प्र.] भगवन् ! (एक) असुरकुमार, एक जीव की अपेक्षा से, कितनी क्रियाओं वाला होता है ? उ.] गौतम ! जैसे (सू. 1596 से 1596 तक में) (एक) नारक की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी) चार दण्डक (कहे गए) थे, वैसे ही (एक) असुरकुमार को प्रोक्षा से भी (क्रियासम्बन्धी) चार दण्डक कहने चाहिए / इस प्रकार का उपयोग लगाकर विचार कर लेना चाहिए कि—एक जीव और एक मनुष्य हो अक्रिय कहा जाता है, शेष सभी जीव अक्रिय नहीं कहे जाते / सर्व जीव, औदारिक शरीरधारी अनेक जीवों की अपेक्षा से--पांच क्रिया वाले होते हैं / नारकों और देवों की अपेक्षा से पांच क्रियाओं वाले नहीं कहे जाते। [2] एवं एक्केक्कजीवपए चत्तारि चत्तारि दंडगा भाणियब्बा। एवं एयं दंडासयं / सवे वि य जीवादीया दंडगा। [1604-2] इस प्रकार एक-एक जीव के पद में चार-चार दण्डक कहने चाहिए / यों कुल मिला कर सौ दण्डक होते हैं / ये सब एक जीव आदि से सम्बन्धित दण्डक हैं / विवेचन जीवों को दूसरे जीवों की अपेक्षा से लगने वाली क्रियाओं को प्ररूपणा---प्रस्तुत 17 सूत्रों (1588 से 1604) में जीवों के, दूसरे जीवों की अपेक्षा से लगने वाली क्रियाओं की प्ररूपणा की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org