________________ 496] [प्रज्ञापनासूत्र 1598. रइए णं भंते ! जीवेहितो कइकिरिए ? गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए। |1568 प्र.] भगवन् ! (एक) नारक, (अनेक) जोवों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ? | उ.] गौतम ! (वह) कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है। 1599. [1] णेरइए णं भंते ! भेरइएहितो कइकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए। एवं जहेव पढभो दंडओ तहा एसो वि बितिम्रो भाणियन्यो। [1599-1 प्र.] भगवन् ! एक नैरयिक, अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ? [उ.] गौतम ! (वह) कदाचित् तीन क्रियाओं वाला और कदाचित् चार क्रियाओं वाला होता है / इस प्रकार जैसे प्रथम दण्डक कहा था, उसी प्रकार यह द्वितीय दण्डक भी कहना चाहिए। [2] एवं जाव वेमाणिएहितो। णवरं रइयस्स रइएहितो देवेहितो य पंचमा किरिया णस्थि / |1599-2] इसी प्रकार (पूर्वोक्त पालापक के समान) यावत् अनेक वैमानिकों की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी प्रालापक कहने चाहिए / ) विशेष यह है कि (एक) नैरयिक के (अनेक) नरयिकों को अपेक्षा से (क्रिया सम्वन्धी आलापक में) पंचम क्रिया नहीं होती। 1600. रइया णं भंते ! जीवाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया सिय चउकिरिया सिय पंचकिरिया / [1600 प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक, (एक) जीव को अपेक्षा से, कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? उ.] गौतम ! कदाचित् तीन क्रियानों वाले, कदाचित् चार क्रियाओं वाले और कदाचित् पांच क्रियाओं वाले होते हैं। 1601. एवं जाव वेमाणियाओ। णवरं रइयानो देवाओ य पंचमा किरिया पत्थि / {1601] इसी प्रकार (पूर्वोक्त पालापक के समान) (एक असुरकुमार से ले कर) यावत् एक वैमानिक की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी आलापक कहने चाहिए / ) विशेष यह है कि (एक) नैरयिक या (एक) देव की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी पालापक में) पंचम क्रिया नहीं होती। 1602. रइया णं भंते ! जीहितो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि। [1602 प्र.] भगवन् ! (अनेक) नारक, (अनेक) जीवों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org