Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ बाईसवाँ क्रियापद] [501 कज्जति सिय णो कज्जति, जस्स पुण पाणाइवायकिरिया कज्जति तस्स पारियावणिया किरिया नियमा कज्जति / [1612 प्र.] भगवन् ! जिसके पारितापनिकी क्रिया होती है क्या उसके प्राणातिपात-क्रिया होती है ? (तथा) जिसके प्राणातिपात-क्रिया होती है, क्या उसके पारितापनिको क्रिया होती है ? [उ.] गौतम! जिस जीव के पारितापनिको क्रिया होती है, उसके प्राणातिपात क्रिया कदाचित होती है. कदाचित नहीं भी होती; किन्तु जिस जीव के प्राणातिपात-क्रिया होती है. उसके पारितापनिकी क्रिया नियम से होती है / 1613. [1] जस्स णं भंते ! गेरइयस्स काइया किरिया कज्जति तस्स आहिगरणिया किरिया कज्जति ? गोयमा ! जहेव जीवस्स (सु. 1607.--12) तहेव णेरइयस्स वि / [1613-1 प्र.] भगवन् ! जिस नैरयिक के कायिकी क्रिया होती है क्या उसके प्राधिकरणिकी क्रिया होती है ? [. गौतम ! जिम प्रकार (सू. 1607 से 1612 तक में) जीव (सामान्य) में (कायिकी आदि क्रियाओं के परस्पर सहभाव की चर्चा की गई है) उसी प्रकार नरयिक के सम्बन्ध में भी (समझ लेनी चाहिए।) निरंतरं जाव वेमाणियस्स / [1613-2] इसी प्रकार (नारक के समान) यावत् वैमानिक तक (क्रियानों के परस्पर सहभाव का कथन करना चाहिए / ) 1614. जं समयं णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जति तं समयं प्राहिगरणिया किरिया कज्जति ? जं समयं आहिगरणिया किरिया कज्जति तं समयं काइया किरिया कज्जति ? एवं जहेव पाइल्लओ दंडओ भणिओ (सु. 1607-13) तहेव भाणियन्वो जाव वेमाणियस्स / [1614 प्र] भगवन् ! जिस समय जीव के कायिकी क्रिया होती है, क्या उस समय उसके प्राधिकरणिकी क्रिया होती है ? (तथा) जिस समय उसके प्राधिकरणिकी क्रिया होती है, क्या उस समय कायिकी क्रिया होती है ? [उ.] (गौतम ! ) जिस प्रकार (सू. 1607 से 1613 तक में) क्रियाओं के परस्पर सहभाव के सम्बन्ध में प्रारम्भिक दण्डक कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। 1615. जं देसं णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जति तं देसं णं पाहिगरणिया किरिया कज्जति? तहेव जाव वेमाणियस्स / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org