________________ 484] [प्रजापनासूत्र प्राणातिपातक्रिया-किसी प्रकार से आत्महत्या करना, अथवा प्रद्वेषादिवश दूसरों को या दोनों को प्राण से रहित करना, यह त्रिविध प्राणातिपात क्रिया है।' ___ पारितापनिकी क्रिया : शंका समाधान-जो तप या अन्य अनुष्ठान अशक्य हो, जिस तप के करने से मन में दुर्ध्यान पैदा होता हो, इन्द्रियों की हानि हो, मनवचनकाया के योग उत्पथ पर चलें या एकदम क्षीण हो जाएँ, वह तपश्चरण या कायकष्ट पारितापनिकी क्रिया में है। परन्तु जिससे दुान न हो, जिसका परिणाम अात्महितकर हो, कर्मक्षय करने की उमंग हो, उन्नत भावना हो, वहाँ पारितापनिकी क्रिया नहीं होती। जीवों के सक्रियत्व प्रक्रियत्व की प्ररूपणा 1573. जीवा णं भंते ! कि सकिरिया अकिरिया? गोयमा! जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि। से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि? गोयमा! जीवा दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-संसारसमावष्णगा य असंसारसमावण्णगाय। तस्थ णं जे ते असंसारसमावण्णगा ते णं सिद्धा, सिद्धा अकिरिया। तत्य णं जे ते संसारसमावण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सेलेसिपडिवण्णगा य असेलेसिपडिवण्णगा य / तत्थ जे जे ते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं अकिरिया। तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवण्णगा ते णं सकिरिया / से एतेणढणं गोयमा ! एवं वुच्चति जीवा सकिरिया वि अफिरिया वि। [1573 प्र.] भगवन् ! जीव सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय (क्रियारहित) ? [उ.] गौतम ! जीव सक्रिय (क्रिया-युक्त) भी होते हैं और अक्रिय (क्रियारहित) भी। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जीव सक्रिय भी होते हैं और प्रक्रिय भी होते हैं ? [उ.] गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-संसारसमापनक और प्रसंसारसमापन्नक। उनमें से जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध (मुक्त) अक्रिय (क्रियारहित) होते हैं / और उनमें से जो संसारममापनक हैं, वे भी दो प्रकार के हैं-शैलेशीप्रतिपन्नक और प्रशैलेशीप्रतिपन्नक। उनमें से जो शैलेशी-प्रतिपन्नक होते हैं, वे अक्रिय हैं और जो प्रशैलेशी-प्रतिपन्नक होते हैं, वे सक्रिय होते हैं। हे गौतम ! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि जीव सक्रिय भी हैं और अक्रिय भी। 1. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र 436, 2. वही, पत्र 436 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.