________________ बाईसवाँ क्रियापद] [487 [उ.] हाँ, (गौतम ! ) (मैथुनक्रिया संलग्न) होती है। [प्र.] "भगवन् ! किस (विषय) में जीवों के मैथुन (के अध्यवसाय) से (मैथुन-) क्रिया लगती है।.] 'भगवन् ! कि [उ.] गौतम ! रूपों अथवा रूपसहगत (स्त्री आदि) द्रव्यों (के विषय) में (यह क्रिया लगती है / ) [2] एवं रइयाणं गिरतरं जाव वेमाणियाणं / [1578-2] इसी प्रकार (समुच्चय जीवों के मैथुन क्रियाविषयक पालापकों के समान) नै रयिकों से ले कर निरन्तर (लगातार) वैमानिकों तक की (मैथुनक्रिया के पालापक कहने चाहिए / ) 1579. [1] अस्थि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्जइ ? हंता! अस्थि / कम्हि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्जति ? गोयमा ! सव्वदन्वेसु। [1579-1 प्र.] भगवन् ! क्या जीवों के परिग्रह (के अध्यवसाय) से (परिग्रह-) क्रिया लगती) है ? [उ-] हाँ, गौतम ! (परिग्रह क्रिया लगती) है / [प्र.] भगवन् ! किस (विषय) में जीवों के परिग्रह (के अध्यवसाय) से (परिग्रह-) क्रिया लगती है ? [उ.] गौतम ! समस्त द्रव्यों (के विषय) में (यह क्रिया लगती है।) [2] एवं गैरइयाणं जाव वेमाणियाणं / [1579-2] इसी तरह (समुच्चय जीवों के परिग्रह-क्रियाविषयक पालापकों के समान) नैरयिकों से ले कर वैमानिकों तक (परिग्रह-क्रिया-विषयक पालापक कहने चाहिए / ) 1580. एवं कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं पेज्जेणं दोसेणं कलहेणं अभक्खाणेणं पेसुण्णणं परपरिवाएणं अरतिरतीए मायामोसेणं मिच्छादसणसल्लेणं सम्वेसु जीव-णेरइयभेदेसु भाणियन्त्र णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ति / एवं अट्ठारस एते दंडगा 18 / 1580 | इसी प्रकार क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से, राग (प्रेय) से, द्वेष से, कलह से, अभ्याख्यान से, पैशुन्य से, परपरिवाद से, अरति-रति से, मायामृषा से एवं मिथ्यादर्शनशल्य (के अध्यवसाय) से (लगने वाली क्रोधादि क्रियाओं के विषय में पूर्ववत्) समस्त (समुच्चय) जीवों तथा नारको के भेदों से (ले कर) लगातार वैमानिकों तक के (क्रोधादिक्रियाविषयक पालापक) कहने चाहिए / इस प्रकार ये (अठारह पापस्थानों के अध्यवसाय से लगने वाली क्रियाओं के) अठारह दण्डक (पालापक) हुए। विवेचन–अठारह पापस्थानों से जीवों को लगने वाली क्रियाओं को प्ररूपणा-प्रस्तुत सात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org