________________ माईसवाँ क्रियापद] [485 विवेचन-जीवों को सक्रियता-अक्रियता का निर्धारण-प्रस्तुत सूत्र (1573) में जीवों को सक्रिय और अक्रिय दोनों प्रकार का बताकर उनका विश्लेषणपूर्वक निर्धारण किया गया है / पारिभाषिक शब्दों के अर्थ---सक्रिय-पूर्वोक्त क्रियानों से युक्त, या क्रियानों में रत / प्रक्रिय-समस्त क्रियाओं से रहित / ___ संसारसमापन्नक-चतुर्गति भ्रमणरूप संसार को प्राप्त-युक्त। असंसारसमापत्रक-उससे विपरीत-मुक्त / सिद्धों की अक्रियता-सिद्ध देह एवं मनोवृत्ति आदि से रहित होने से पूर्वोक्त क्रिया से रहित हैं, इसलिए वे अक्रिय हैं। शैलेशी-प्रतिपन्नक-अयोगी अवस्था को प्राप्त / शैलेशोप्रतिपत्रकों के सूक्ष्म-बादर काय, वचन और मन के योगों का निरोध हो जाता है, इस कारण वे अक्रिय हैं / अशैलेशीप्रतिपन्नक-शैलेशी-अवस्था से रहित समस्त संसारी प्राणीगण, जिनके मन, वचन, काया के योगों का निरोध नहीं हुआ है / वे सक्रिय हैं।' जीवों को प्राणातिपातादिकिया तथा विषय की प्ररूपणा 1574. अस्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जति ? हंता गोयमा ! अस्थि / कम्हि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ ? गोयमा ! छसु जीवणिकाएसु / [1574 प्र.] भगवन् ! क्या जीवों को प्राणातिपात (के अध्यवसाय) से (प्राणातिपात)क्रिया लगती है ? [उ.] हाँ, गौतम ! (प्राणातिपातक्रिया संलग्न) होती है / [प्र.] भगवन् ! किस (विषय) में जीवों को प्राणातिपात (के अध्यवसाय) से (प्राणातिपात)क्रिया लगती है ? [उ.] गौतम ! छह जीवनिकायों (के विषय) में (लगती है।) 1575. [1] अस्थि णं भंते ! रइयाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जति ? गोयमा! एवं चेव। [1575-1 प्र.] भगवन् ! क्या नारकों को प्राणातिपात (के अध्यवसाय) से (प्राणातिपात)क्रिया लगती है ? [उ.] (हाँ) गौतम ! ऐसा (पूर्ववत्) ही है। [2] एवं जाव निरंतरं वेमाणियाणं / [1575-2] इसी प्रकार (नारकों के पालाप के समान) (नारकों से लेकर) यावत् निरन्तर वैमानिकों तक का (पालाप कहना चाहिए।) 1. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र 437 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org